लिखते हैं, दरबानी पर भी लिक्खेंगे
झाँसी वाली रानी पर भी लिक्खेंगे
आप अपनी आसानी पर भी लिक्खेंगे
यानी बेईमानी पर भी लिक्खेंगे
महलों पर लोगों ने ढेरों लिक्खा है
पूछो, छप्पर-छानी पर भी लिक्खेंगे
फ़रमाँबरदारों को इस का इल्म नहीं
हाकिम नाफ़रमानी पर भी लिक्खेंगे
अपना तो कागज़ पर लिखना मुश्किल है
और अनपढ़ तो पानी पर भी लिक्खेंगे
बस, कुछ दिन, खेती भी किस्सा हो जाए
खेती और किसानी पर भी लिक्खेंगे
हम ने सर्वत प्यार मुहब्बत खूब लिखा
क्या हम खींचातानी पर भी लिक्खेंगे
Swelling, Anti Ageing, Wrinkles, Boost Energy, Hair Growth Etc.Treatmen...
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इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष
सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व
किस...
5 वर्ष पहले
26 टिप्पणियां:
bahut khoob.......
सर्वत जी मैने पहले एक बार ब्लॉग सम्मेलन के रिपोर्टिंग में आप के नाम के महान ग़ज़ल कार प्रयोग किया था उस समय मैने आपको पढ़ नही था बस लोगो से सुना था ..आज लग रहा है मैने सही लिखा था..मुझे ग़ज़ल की बारीकियों के बारे में बहुत जानकारी तो नही है पर हाँ एक बात ज़रूर करूँगा.ऐसी ग़ज़ल लिखना आसान नही...बहुत बढ़िया ग़ज़ल..धन्यवाद सर्वत जी....
श्रद्धेय सर्वत साहब
आपको पढ़ना मेरे लिए हमेशा "अच्छा शगुन" की तरह रहा है
आपको पढ़ पढ़ कर सीखा है |
अपना तो कागज़ पर लिखना मुश्किल है
और अनपढ़ तो पानी पर भी लिक्खेंगे
बस, कुछ दिन, खेती भी किस्सा हो जाए
खेती और किसानी पर भी लिक्खेंगे
इन्हें पढ़ कर आज भी बहुत कुछ सीखने को मिला
हम तो बस इंतज़ार में रहते हैं, कब आप की ग़ज़ल से अस्त्र-शास्त्र निकलेंगे...
जबर्दस्त शेरो से भरी है ये ग़ज़ल.
सर्वत जी भई कमाल का लिखते है, बार बार पढने को दिल करता है
महलों पर लोगों ने ढेरों लिक्खा है
पूछो, छप्पर-छानी पर भी लिक्खेंगे
फ़रमाँबरदारों को इस का इल्म नहीं
हाकिम नाफ़रमानी पर भी लिक्खेंगे
अपना तो कागज़ पर लिखना मुश्किल है
और अनपढ़ तो पानी पर भी लिक्खेंगे
ये अश’आर ख़ास तौर पर अच्छे लगे ,एक अच्छी ग़ज़ल से रु ब रु हुए पाठक
जनाब एक सवाल था कि
नेकी कर दरिया में डाल, कहने वाले
इस मिसरे पर नज़रे सानी की ज़रूरत तो नहीं?
इस्मत साहिबा आदाब, आप का शुक्रगुज़ार हूँ कि आप इस नाचीज़ के टूटे-फूटे कलाम को अहमियत देती हैं. मैं खुद को मुब्तदी ही समझता हूँ और कभी उस्ताद बनने या समझने की गलती नहीं की. इसके बावजूद आप और ढेरों ब्लागर भाई-बहनों की मुहब्बत मुझे हासिल है जिस पर फख्र भी है.
आपने जिस मिसरे पर नजरे-सानी के लिए कहा है, उसे हर तरह से परखने के बाद ही मैं ने गजल में शामिल किया है. अगर आपको कुछ कमी नजर आई हो तो निशानदही कीजिएगा. अपनी आँख में पड़ा जर्रा नजर नहीं आता. मुझे उम्मीद है आप बताकर फिर शुक्रगुज़ार होने का मौक़ा देंगी.
अपना तो कागज़ पर लिखना मुश्किल है
और अनपढ़ तो पानी पर भी लिक्खेंगे
............बहुत खूब सर्वत साहब.
बस, कुछ दिन, खेती भी किस्सा हो जाए
खेती और किसानी पर भी लिक्खेंगे
शानदार गजल। बहुत दिन बाद गजल मिली, वरन ब्लाग पर आकर निराशा ही रहना पडता था।
बधाई
जनाब!
बहुत ख़ूब!
जो तंज़ 'खेती और किसानी पर' लिखने में आया है, वो जान है ग़ज़ल की।
जारी रहिए, जो जो छूटा पिछ्ले बरस, उसे शाया कीजिए।
बहुत ख़ूब।
नेकी कर दरिया में डाल, कहने वाले
मामूली कुर्बानी पर भी लिक्खेंगे
महलों पर लोगों ने ढेरों लिक्खा है
पूछो, छप्पर-छानी पर भी लिक्खेंगे
फ़रमाँबरदारों को इस का इल्म नहीं
हाकिम नाफ़रमानी पर भी लिक्खेंगे
सर्वत साहब एक एक कर सब शेर ही दुबारा उतार गये थे कॉमेंट लिखते लिखते .... पर फिर दुबारा ३ शेर ही रहने दिए .... आपकी कलाम से शेर नही हक़ीकत निकलती है ... किसी एक का चयन बहुत ही मुश्किल होता है .... मज़ा आ गया ... लाजवाब ....
behtreen kathay ,kathay ki drishti se aapki 'gazlen '.
apne hone kaa ehsaas karaa deten hain ,jab gazal koi zmaane ko sunaa deten hain .
veerubhai 1947 .blogspot .com
बस, कुछ दिन, खेती भी किस्सा हो जाए
खेती और किसानी पर भी लिक्खेंगे
बहुत सुन्दर शेर है सर्वत साहब. जिस तरह लोग शहरों और नौकरियों की ओर दौड़ रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि खेती-किसानी भी किस्सा न बन जाये.
महलों पर लोगों ने ढेरों लिक्खा है
पूछो, छप्पर-छानी पर भी लिक्खेंगे
आपका क्या है जनाब किसी भी विषय पर लिखने का हुनर है आपमें .....!!
अपना तो कागज़ पर लिखना मुश्किल है
और अनपढ़ तो पानी पर भी लिक्खेंगे
ये अच्छा व्यंग किया .....बहुत खूब .....!!
हम ने सर्वत प्यार मुहब्बत खूब लिखा
क्या हम खींचातानी पर भी लिक्खेंगे
एक बार फिर हो जाये .....प्यार को जिन्दा रखना भी जरुरी है .....!!
आप अपनी आसानी पर भी लिक्खेंगे
यानी बेईमानी पर भी लिक्खेंगे
नेकी कर दरिया में डाल, कहने वाले
मामूली कुर्बानी पर भी लिक्खेंगे
waah waah
महलों पर लोगों ने ढेरों लिक्खा है
पूछो, छप्पर-छानी पर भी लिक्खेंगे
kya baat pooch li
फ़रमाँबरदारों को इस का इल्म नहीं
हाकिम नाफ़रमानी पर भी लिक्खेंगे
अपना तो कागज़ पर लिखना मुश्किल है
और अनपढ़ तो पानी पर भी लिक्खेंगे
बस, कुछ दिन, खेती भी किस्सा हो जाए
खेती और किसानी पर भी लिक्खेंगे
हम ने सर्वत प्यार मुहब्बत खूब लिखा
क्या हम खींचातानी पर भी लिक्खेंगे
bahut shaandaar gazal
ye bahut achcha kiya aapne ......ki mujhe ye gazal padhne mili
purani nayab gazlen aisi hi padhwate rahe
जो गज़लें हमारी आँखों से नहीं गुजरीं
उसका हमें भी दुःख है.....
सर्वत साहब,,
ऐसे नगीने कहाँ छिपा के रखते हो
ये पहले की गज़लें हैं ...वाह..
तो अब क्या आलम है
वो हम सब जानते ही हैं
गज़लें पहले की हैं,मन को भाती हैं
पढ़ ली हैं,अब बानी पर भी लिक्खेंगे
बातें साफ़, कहन भी उजला-उजला है
हम हर बात सयानी पर भी लिक्खेंगे
शेरों की खूबी का अपना जादू है
लहजा, तर्ज़,रवानी पर भी लिक्खेंगे
'नेकी कर' वाले पर डालो एक नज़र
वरना हम नादानी पर भी लिक्खेंगे
'अपना तो कागज़ पर..'सोच अलग-सी है
हम ऐसी मन-मानी पर भी लिक्खेंगे
सारे शेर बने हैं देख मिसाल अपनी
ऐसी खूब-बयानी पर भी लिक्खेंगे
मुबारकबाद .
dariyaa mein khatkaa hai ji...
ismat mam ki baat ko muflisi andaaz mein dekhiye...
1 aur...
baaki ghazal shaandaar hai...
neki kar daryaa mein daal, jo kahte hain....
अपना तो कागज़ पर लिखना मुश्किल है
और अनपढ़ तो पानी पर भी लिक्खेंगे
कमाल का है.....
बहुत गहरी बात...
अपना तो कागज़ पर लिखना मुश्किल है
और अनपढ़ तो पानी पर भी लिक्खेंगे
बस, कुछ दिन, खेती भी किस्सा हो जाए
खेती और किसानी पर भी लिक्खेंगे
हम ने सर्वत प्यार मुहब्बत खूब लिखा
क्या हम खींचातानी पर भी लिक्खेंगे
Baap re baap..aap to bolti band kar dete hain!
Tera har ek ashaar khoobsoorat hai ae rafeeq!
Ek kee taareef doosre kee tauheen hogi!
Umda aur achook!
आपकी यह रचना ब्लॉग जगत में आनी वाली उत्कृष्ट पद्य रचनाओं में से है. साधुवाद.
भवानी प्रसाद मिश्र की वह पंक्ति याद आ रही है-
" मैं किसम किसम के गीत बेचता हूँ."
गज़ब का लिखा है सरवत भाई ! तारीफ़ क्या करून ...बड़े बड़े लोगों के सामने ...मगर बार बार पढने का जी करता है ! शुभकामनायें !
अपना तो कागज़ पर लिखना मुश्किल है
और अनपढ़ तो पानी पर भी लिक्खेंगे
poori ghazal shaandar
हम ने सर्वत प्यार मुहब्बत खूब लिखा
क्या हम खींचातानी पर भी लिक्खेंगे
क्या मिसाल दूँ बेमिसाल की
आज दिनों बाद फुरसत से आया हूँ- "सर्वतमय" होने...
एक जबरदस्त ग़ज़ल उस्ताद...वैसे सच पूछिये तो कौन-सी ग़ज़ल आपकी जबरदस्त नहीं होती।
मतले से लेकर मक्ते तक...बस उफ़्फ़ उफ़्फ़ उफ़्फ़!!!
इस शेर पर एक फौजी का कड़क सैल्युट
"फ़रमाँबरदारों को इस का इल्म नहीं
हाकिम नाफ़रमानी पर भी लिक्खेंगे "
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