गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

नई ग़ज़ल


सौ जतन से क्या बोलें
 अपने मन से क्या बोलें


उम्र भर खमोशी थी
 अन्जुमन से क्या बोलें 


आबले हैं पैरों में 
हम थकन से क्या बोलें


याद है हमें फ़रहाद
 कोहकन से क्या बोलें 


दार तक चले आए 
इस रसन से क्या बोलें


गुफ़्तगू है सूरज से
 हर किरन से क्या बोलें 


सच की पैरवी की है 
अब दहन से क्या बोलें


हमज़बां नहीं 'सर्वत'
 हमवतन से क्या बोलें.