शनिवार, 4 सितंबर 2010

गजल

इधर हंसों के जोड़े पालता है
उधर कीड़े मकोड़े पालता है


बुराई भी सभी करते हैं उसकी
पर उसको कौन छोड़े, पालता है


यकीनन है कोई खुफिया इरादा
कोई ऐसे ही थोड़े पालता है


बचा है कोई भी, जो आज ख़ुद को,
बिना तोड़े मरोड़े पालता है ?


जो दिखलाई नहीं पड़ते किसी को
बदन ऐसे भी फोड़े पालता है


वहीं कानून की होती है  इज्जत
जहाँ इंसाफ कोड़े पालता है


भला जीतेगा कैसे जंग में वह
मेरा दुश्मन भगोड़े पालता है