रविवार, 25 अक्टूबर 2009

इसका इलाज आप बताएं..

आठ महीने, दो तिहाई साल, कहने को छोटा सा अरसा है लेकिन यह मुद्दत मुझे इस लिए अज़ीज़ है क्योंकि आपके बेपनाह प्यार, मुहब्बतों  ने इसे बहुत बड़ा बना दिया है. मुझे लगा ही नहीं कि मैं ब्लॉग पर नया हूँ. फिलहाल, एक कसक उठती है कभी कभी, ब्लॉग पर आते ही मैंने अपनी पसंदीदा गजलें पोस्ट करनी शुरू कर दी थीं. उनमें कई गजलें ऐसी हैं जो मेरी निगाह में अच्छी हैं लेकिन उन्हें इक्का-दुक्का लोगों के अलावा किसी ने देखा भी नहीं. ब्लॉग पर नए को छोड़कर, पुराने को पढ़ने की परम्परा नहीं के बराबर है.
मुझे एक लालच उकसाता है, इन गज़लों पर भी आपकी प्रतिक्रिया जानने का. अगर मेरा यह लोभ नाजायज़ है तो मुझे बताएं. लेकिन अगर मैं कहीं से भी जायज़ मांग कर रहा हूँ तो समर्थन दें. इन गज़लों में, अधिकाँश के आप तक न पहुँच पाने का मुझे दुःख है.
अगर आप रजामंद हों तो इन गज़लों सिलसिला शुरू करूं....वरना भूल जाता हूँ.