शनिवार, 22 अगस्त 2009

गजल- 67

दुआ की बात करते हो, यहाँ गाली नहीं मिलती
मियां दो रूपये में चाय की प्याली नहीं मिलती

यहाँ जीना तो मुश्किल है मगर मरना मुसीबत है
सुना है अब तो कोई कब्र भी खाली नहीं मिलती

कहीं तो हर कदम पर सिर्फ़ सब्ज़ा ही नजर आए
कहीं सौ कोस चलने पर भी हरियाली नहीं मिलती


हमारे दौर के बच्चों ने सब कुछ देख डाला है
मदारी को तमाशों पर कोई ताली नहीं मिलती


सफेदी ओढ़ने का यह नतीजा है कि लोगों के
लहू में भी लहू जैसी कहीं लाली नहीं मिलती

गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, मौत, सब तो हैं
मगर सरकार का दावा है, बदहाली नहीं मिलती!