बुधवार, 17 जून 2009

ये देश है वीर जवानों का........!!

उत्तर प्रदेश की राजधानी, नवाबों का शहर, तहजीब, नफासत, नजाकत का अलमबरदार शहर....लखनऊ, अब अपनी इन सारी विशेषताओं को खो चुका है। १६ जून की शाम, शहर की इज्जत बने हजरतगंज से लेकर आगे २-३ किलोमीटर तक एक गुंडा भरी सिटी बस में एक विदेशी युवती के अंगो के साथ खिलवाड़ करता रहा और किसी माई के लाल में गैरत, खून और हिम्मत की एक बूँद भी नहीं बची थी कि जुबानी विरोध ही करता। विदेशी महिला खिड़की से सर निकालकर चीखती रही, मदद के लिए किसी 'कृष्ण' को पुकारती रही मगर नपुंसकों के इस शहर में शायद लोग अंधे, बहरे होने के साथ ही सम्वेदनहीनता की पराकाष्ठा भी पार कर गये थे। हद तो यहाँ तक हो गयी कि आगे कन्डक्टर ने पीड़ित युवती को ही जबरन बस से उतार दिया।
२८ वर्षीया इडा लोच, डेनमार्क से 'महिलाओं की स्थिति' पर रिसर्च के लिए भारत आयी थीं। हम भारतवासियों, लखनऊ शहर के नागरिकों ने उनके इस शोध में जो 'मदद' की है, उसके लिए समस्त देशवासियों को इस शहर, यहाँ के नागरिकों, प्रशासन, पुलिस, नागरिक तथा महिला संगठनों और राज्य सरकार का सम्मान करना चाहिए। उस बस के ४०-५० मुसाफिरों की नपुंसकता को बधाई देते हुए मैं केवल इतना कहना चाहूँगा कि जो वीरता भरी नपुंसकता आप ने इडा के मामले में दिखाई , उसे बरकरार रखियेगा और कल जब कोई गुंडा आपकी मां, बहन , बेटी-बहू के साथ ऐसा करे तो अपना व्यवहार १६ जून की शाम जैसा ही रखियेगा।
मैं एक गजल पोस्ट करने के इरादे से आया था लेकिन अख़बार की इस खबर ने मुझे गजल वजल से विरत कर दिया। अभी इसे पोस्ट करते समय, मेरे एक मित्र का फोन आ गया और उन्होंने मुझे रोकने की कोशिश की। उनका कहना था कि मेरा गज़लों का ब्लॉग है और मुझे इन फालतू चीज़ों से अपने ब्लॉग को बचाना चाहिए। मैं फ़ैसला ले चुका था कि मैं इस मुद्दे को अपने ब्लॉगर साथियों की अदालत में जरूर पेश करूंगा। लिहाज़ा, सही किया या गलत, यह फ़ैसला आप पर है.