मंगलवार, 23 नवंबर 2010

बस ग़ज़ल के कुछ शेर

पत्थर पत्थर नूर दिखाई देता है 
शीशा चकनाचूर दिखाई देता है .


प्यास लिए चलते चलते मुद्दत गुज़री
दरिया अब भी दूर दिखाई देता है


लोग अंधेपन का रोना क्यों रोते हैं
आँखें हैं, भरपूर दिखाई देता है


सदियाँ गुज़री लेकिन तुमको दहशत में 
हर लंगड़ा तैमूर दिखाई देता है


धोखा पहले पाप बताया जाता था 
लेकिन अब दस्तूर दिखाई देता है