शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

ग़ज़ल

लोग वहम-ओ-गुमान रखते हैं 
अपने हक में बयान रखते हैं 


मुल्क आखिर यकीन किस पे करे 
सब हथेली पे जान रखते हैं 


मालिक-ए-दो जहाँ समझता है 
जो ज़बां बेज़बान रखते हैं 


अब गले मिलते हैं कहाँ इंसान 
फासला दरमियान रखते हैं 


आप सच बोलने का अज्म करें 
किस्सा गो दास्तान रखते हैं 


पाँव किसके ज़मीं पे हैं 'सर्वत'
सभी ऊंची उड़ान रखते हैं 

गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

नई ग़ज़ल


सौ जतन से क्या बोलें
 अपने मन से क्या बोलें


उम्र भर खमोशी थी
 अन्जुमन से क्या बोलें 


आबले हैं पैरों में 
हम थकन से क्या बोलें


याद है हमें फ़रहाद
 कोहकन से क्या बोलें 


दार तक चले आए 
इस रसन से क्या बोलें


गुफ़्तगू है सूरज से
 हर किरन से क्या बोलें 


सच की पैरवी की है 
अब दहन से क्या बोलें


हमज़बां नहीं 'सर्वत'
 हमवतन से क्या बोलें.


सोमवार, 17 जनवरी 2011

ग़ज़ल

बयान देते हैं सब, कोई जी नहीं देता
कठिन समय पे कोई भीख भी नहीं देता

गरीब हो तो कहावत भी याद रखनी थी
बगैर तेल दिया रोशनी नहीं देता

चढाओ जितना भी जल, वो तो सिर्फ़ सूरज है
सुखा तो देता है लेकिन नमी नहीं देता

मैं दर्द लेके दुखी हूँ मगर पता है मुझे
मेरा ख़याल उन्हें भी खुशी नहीं देता

ये रिश्ते नाते भी लगते हैं उस महाजन से
जो सूद लेता है, खाता बही नहीं देता

लिखत पढ़त ही शरीफों में ले गयी सर्वत
मगर लहू मुझे संजीदगी नहीं देता