बहुत दिनों के बाद आना मुमकिन हो सका है. कुछ काम की व्यस्तता, कुछ हालात, इन सभी ने कुछ ऐसा किया कि लगा जैसे नेट से मोह भंग हो गया हो. चाहते हुए भी कुछ नहीं हो सका. कुछ मित्रों से राय ली-क्या ब्लॉग बंद कर दूं....जवाब मिला, ऐसा होता रहता है. लगे रहो. फिर भी मन को चैन नहीं था. फिर सोचा यह कमेन्ट वगैरह का चक्कर खत्म कर दिया जाए. यह पॉइंट कुछ जचा, कमेन्ट का ऑप्शन खत्म कर दिया. जिन्हें मुझे पढना है, पढ़ लें. प्रशंसा लेकर करूंगा भी क्या. हाँ, जो दोष हों उनके लिए मेल बॉक्स तो है ही.
फिलहाल, बिना कमेन्ट की इच्छा किए, गज़ल आपकी खिदमत में पेश है.
पता चलता नहीं दस्तूर क्या है
यहाँ मंज़ूर, नामंजूर क्या है
कभी खादी, कभी खाकी के चर्चे
हमारे दौर में तैमूर क्या है
गुलामी बन गयी है जिनकी आदत
उन्हें चित्तौड़ क्या, मैसूर क्या है
नहीं है जिसकी आँखों में उजाला
वही बतला रहा है नूर क्या है
बताओ रेत है, पत्थर कि शीशा
किया है तुम ने जिस को चूर, क्या है
यही दिल्ली, जिसे दिल कह रहे हो
अगर नजदीक है तो दूर क्या है
वतन सोने की चिड़िया था, ये सच है
मगर अब सोचिए मशहूर क्या है.
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इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष
सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व
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5 वर्ष पहले