बुधवार, 28 अक्टूबर 2009

ग़ज़ल....ek baar phir

आपकी आंखों में नमी भर दी !
बेगुनाहों ने मर के हद कर दी


उग के सूरज ने धूप क्या कर दी
ज़र्द चेहरों की बढ़ गयी ज़र्दी


आप अगर मर्द हैं तो खुश मत हों
काम आती है सिर्फ़ नामर्दी 


फिर कहीं बेकसूर ढेर  हुए
आज कितनी अकड़ में है वर्दी 


आदमी हूँ, मुझे भी खलता है
पेड़ पौधों से इतनी हमदर्दी!


और बेटी का बाप क्या करता
अपनी पगडी तो पाँव में धर दी

रविवार, 25 अक्टूबर 2009

इसका इलाज आप बताएं..

आठ महीने, दो तिहाई साल, कहने को छोटा सा अरसा है लेकिन यह मुद्दत मुझे इस लिए अज़ीज़ है क्योंकि आपके बेपनाह प्यार, मुहब्बतों  ने इसे बहुत बड़ा बना दिया है. मुझे लगा ही नहीं कि मैं ब्लॉग पर नया हूँ. फिलहाल, एक कसक उठती है कभी कभी, ब्लॉग पर आते ही मैंने अपनी पसंदीदा गजलें पोस्ट करनी शुरू कर दी थीं. उनमें कई गजलें ऐसी हैं जो मेरी निगाह में अच्छी हैं लेकिन उन्हें इक्का-दुक्का लोगों के अलावा किसी ने देखा भी नहीं. ब्लॉग पर नए को छोड़कर, पुराने को पढ़ने की परम्परा नहीं के बराबर है.
मुझे एक लालच उकसाता है, इन गज़लों पर भी आपकी प्रतिक्रिया जानने का. अगर मेरा यह लोभ नाजायज़ है तो मुझे बताएं. लेकिन अगर मैं कहीं से भी जायज़ मांग कर रहा हूँ तो समर्थन दें. इन गज़लों में, अधिकाँश के आप तक न पहुँच पाने का मुझे दुःख है.
अगर आप रजामंद हों तो इन गज़लों सिलसिला शुरू करूं....वरना भूल जाता हूँ.

शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2009

शुभकामना

तमस पर प्रकाश की विजय का पर्व, दीपावली, आपके घर-आंगन, परिवार, इष्ट - मित्रों के जीवन को दीप्तिमान, प्रकाशित करे, यही कामना है. दीपोत्सव के बावजूद रोज़गार अवसर नहीं दे रहा है, हर किसी को अलग-अलग संदेश भेजना कुछ व्यस्तता और कुछ काहिलियत के नाते सम्भव नहीं. आशा है, आप सभी मेरी मजबूरियों को समझते हुए, मंगल कामना स्वीकार करेंगे और अपनी प्रार्थना में मुझे भी शामिल करेंगे.


शुभ दीपोत्सव

गुरुवार, 8 अक्टूबर 2009

गजल- 72

होगी तेरी धूम बच्चा
पाँव सब के चूम बच्चा

लोग सब कुछ वार देंगे
बेतहाशा झूम बच्चा

दीन क्या है, धर्म क्या है?
हमको क्या मालूम बच्चा !

कौन जालिम है यहाँ पर
सब तो हैं मजलूम बच्चा

हम से दौलत चाहता है?
हम भी हैं महरूम बच्चा

थम गयी है अब हवा यूँ
जैसे इक मासूम बच्चा

तुझको कुर्सी की तलब है?
ले तिरंगा, घूम बच्चा॥