होगी तेरी धूम बच्चा
पाँव सब के चूम बच्चा
लोग सब कुछ वार देंगे
बेतहाशा झूम बच्चा
दीन क्या है, धर्म क्या है?
हमको क्या मालूम बच्चा !
कौन जालिम है यहाँ पर
सब तो हैं मजलूम बच्चा
हम से दौलत चाहता है?
हम भी हैं महरूम बच्चा
थम गयी है अब हवा यूँ
जैसे इक मासूम बच्चा
तुझको कुर्सी की तलब है?
ले तिरंगा, घूम बच्चा॥
मै
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अगर आपको भारत वर्ष की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद पर थोड़ी सी भी
आस्था है तो आप किसी भी बीमारी के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट के लिए मुझसे बात कर
सकते हैं.
...
5 माह पहले
21 टिप्पणियां:
तुझको कुर्सी की तलब है?
ले तिरंगा, घूम बच्चा॥
शानदार गजल का शानदार शेर
गज़ल तुम्हारी इतनी प्यारी
मन में मच गई धूम बच्चा
बेहतर बात कही है तुमने
अब ये दाद संभाल बच्चा!!
--बहुत खूब!!
पूरी गज़ल ही लाजवाब है मगर ये शेर लाजवाब है आभार
तुझको कुर्सी की तलब है?
ले तिरंगा, घूम बच्चा॥
तुझको कुर्सी की तलब है?
ले तिरंगा, घूम बच्चा
क्या बात है. वैसे गज़ल-लेखन पर आप का पूरा अधिकार है. बहुत सुन्दर गज़ल.
कमाल की ग़ज़ल कही है आपने और मक्ता...अह्ह्ह...वाह...बेजोड़.
नीरज
बहुत खूब
वाह वाह
मैं ने गज़लों में प्रयोग किए है, गज़लों को 'महबूब से बातचीत' के दायरे से निकाल कर आम सरोकारों की राह दिखाई है। हो सकता है कुछ चूक मुझ से हो गयी हो ...
Aapse koi chuk nahin hui hai.Lik se hatkar kaam karne walon ko aksar aalaochnaon ka saamna karna padta hai.
प्रणाम दादा
पता नहीं क्यों मेरे ब्लाग पर आपका ब्लाग अपडेट नहीं होता है. हमेशा लेट हो जाता हूं. मतला और आख़िरी शेर तो कमाल के हैं. बच्चा रदीफ़ का निर्वाह सटीक होने के कारण सुन्दर लग रहा हैं. बडा कठिन है ऐसे रदीफ़ों का निर्वाह्. यहीं उस्तादों और शिष्यों की परख हो जाती है.
माफ करियेगा ये सबसे कोमल शेर तो रह ही गया-थम गयी है अब हवा यूँ
जैसे इक मासूम बच्चा.
इसने स्व0 हरजीत जी के शेर की याद दिला दी है. चित्र अलग है लेकिन कोमलता और मासूमियत वही-
नींद की टहनियां हिला के गया,
सुबह का इक शरारती बच्चा.
मैं गूगल टाक पर क्या कम्प्यूटर पर ही कम बैठ पा रहा हूं. मन ही नहीं लगता. यही तो दिक्कत है. एक जैसी स्थिति से जी उचटने लगता है.
कौन जालिम है यहाँ पर
सब तो हैं मजलूम बच्चा
इन पंक्तियों की सिम्पलीसिटी पर निसार होने को जी चाहता है...और फिर इन पंक्तियों की सच्चाई
तुझको कुर्सी की तलब है?
ले तिरंगा, घूम बच्चा॥
हमारी जम्हूरियत की यही सच्चाई है और वतनपरस्ती का यही एक मकसद.
छोटी बह्र मे क्या बड़े-बड़े कमाल कर दिये आपने...वाह!!
"पाँव सबके चूम बच्चा ...."
क्या बात है, सुबह सुबह क्या परोस रहे हो ??
सामयिक और सच्ची बात ...
बिना जालिम मजलूम कहाँ से होंगे शायर जनाब ?
कौन जालिम है यहाँ पर
सब तो हैं मजलूम बच्चा
बहुत बढिया । पहला ही शेर लाजवाब । पर ये भी,
हम से दौलत चाहता है?
हम भी हैं महरूम बच्चा
सुंदर है ।
तुझको कुर्सी की तलब है?
ले तिरंगा, घूम बच्चा॥
छोटे बहर की इस धूम में एक और रॉकेट सरीखी ग़ज़ल.
बधाई ही बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
sachche neta desh ke sab
ho gaye marhoom bachcha
aur kapti leedaron ka
market mein boom bachcha
sarwat ji aapki behatareen rachna ke saamne meri chhoti si tukbandi, aapke sur men sur milati hui pesh hai.
aabhaar.
सर्वत भाई
बिलकुल जुदा अंदाज़ है इस बार
जोर का झटकाहै धीरे से इस बार
शानदार और जानदार हमेशा की तरह
दीपावली की सुभ कामनाओं सहित
lagta hai kisi peer fakir mangte ki ghazal aapne bheekh main maag li
:)
bahut hi nirala andaaz....
radif to jaan le gaya baccha !!
m.. mmm....mera matlab hai sir !!
दीन क्या है, धर्म क्या है?
हमको क्या मालूम बच्चा !
bada fakirana andaz hai....
Don't take 'fakirana' in -ve sense it's a compliment for this ghazal)
लोग सब कुछ वार देंगे
बेतहाशा झूम बच्चा
ye sh'er to is ghazal ki jaan hai.
Diwali ki hardik shubhkamnaiyen !!
waah kya matla hai
paanv sabke chum bachcha
maqta bhi bahut teekha hai
sarwat ji deri se aane ke liye kashmaparthi hai
बहुत सुन्दर रचना
"हम से दौलत चाहता है?
हम भी हैं महरूम बच्चा"
"क्यों करता है आपाधापी
करले प्रभु का ध्यान बच्चा
मिल जायेगा सबकुछ तुझको
सीना तान काम कर सच्चा"
बधाई !!!!!!!!
umda ghajal .........dil ko chhoo gayi...
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