रोटी, लिबास और मकानों से कट गए
हम सीधे सादे लोग सयानों से कट गए
फिर यूँ हुआ कि सबने उठा ली क़सम यहाँ
फिर यूँ हुआ कि लोग ज़बानों से कट गए
जंगल में बस्तियों का सबब हमसे पूछिए
जंगल के पहरेदार मचानों से कट गए
बुजदिल कहूं उन्हें कि शहीदों में जोड़ लूँ
वो आदमी जो ठौर ठिकानों से कट गए
पटवारी, साहूकार, मवेशी, ज़मीनदार
खूराक मिल गयी तो किसानों से कट गए
दर्पण चमक रहा है उसी आबोताब से
चेहरे तो झुर्रियों के निशानों से कट गए
'सर्वत' जब आफताब उगाने की फ़िक्र थी
सब लोग उल्टे सीधे बहानों से कट गए
हम सीधे सादे लोग सयानों से कट गए
फिर यूँ हुआ कि सबने उठा ली क़सम यहाँ
फिर यूँ हुआ कि लोग ज़बानों से कट गए
जंगल में बस्तियों का सबब हमसे पूछिए
जंगल के पहरेदार मचानों से कट गए
बुजदिल कहूं उन्हें कि शहीदों में जोड़ लूँ
वो आदमी जो ठौर ठिकानों से कट गए
पटवारी, साहूकार, मवेशी, ज़मीनदार
खूराक मिल गयी तो किसानों से कट गए
दर्पण चमक रहा है उसी आबोताब से
चेहरे तो झुर्रियों के निशानों से कट गए
'सर्वत' जब आफताब उगाने की फ़िक्र थी
सब लोग उल्टे सीधे बहानों से कट गए
24 टिप्पणियां:
आह..."दर्पण चमक रहा है उसी आबोताब से/चेहरे तो झुर्रियों के निशानों से कट गए" ...बहुत खूब सर्वत साब, बहुत खूब!!
पटवारी, साहूकार, मवेशी, ज़मीनदार
खूराक मिल गयी तो किसानों से कट गए
दर्पण चमक रहा है उसी आबोताब से
चेहरे तो झुर्रियों के निशानों से कट गए
हर एक शेर क्या खूब कहा है लाजवाब बधाई
"दर्पण चमक रहा है उसी आबोताब से
चेहरे तो झुर्रियों के निशानों से कट गए"
लाजवाब शेर बधाई !
हम सीधे सादे लोग सयानों से कट गए
…….…
फिर यूँ हुआ कि सबने उठा ली क़सम यहाँ
फिर यूँ हुआ कि लोग ज़बानों से कट गए
क्या बात है……बेहतरीन
पटवारी, साहूकार, मवेशी, ज़मीनदार
खूराक मिल गयी तो किसानों से कट गए
हुज़ूर....ऐसा नायाब शेर .....
वो बात, जिसे कहने के लिए हज़ारों लफ्ज़
दरकार रहते हैं....आपने एक ही शेर में
मुकम्मिल कर दी ....वाह-वा !!
और ये .....
एक अकेला मिसरा ही ग़ज़ब ढा रहा है
'सर्वत' जब आफताब उगाने की फ़िक्र थी
आपकी सोच की पुख्तगी
और तखय्युल की बलंदी हर लिहाज़ से
क़ाबिले-ज़िक्र है जनाब...
एक अरसे के बाद
ऐसा उम्दा कलाम नज़र नवाज़ हुआ है
मुबारकबाद .
फिर से आ गया था इस ग़ज़ल का लुत्फ़ लेने।
फिर से इस बेमिसाल मतले ने लाजवाब किया।
फिर से इस "दर्पण चमक रहा" वाले शेर ने हजारों दाद निकलवायी मुख से।
...और फिर से मक्ते के जादू ने अपना तिलिस्म फेंका यूं कि हम ’सर्वत’...’सर्वत’ कर रहे हैं।
kamaal ki gazal , matale se chhhut kar makte tak jaa rahaa hun fir wahaan se tut kar matale tak baar baar aarahaa hun ... kis she'r ki baat karun , wese ustaad shayeeron ke liye kuchh kahanaa is naachij ko gawaara nahi ... har sher bemishaal hai yahaan to aaj to chandi hi chandi hai .. saare hi she'r ka lutf le rahaa hun ... aur loot rahaa hun..
बुजदिल कहूं उन्हें कि शहीदों में जोड़ लूँ
वो आदमी जो ठौर ठिकानों से कट गए..
khaas kar is she'r ke baare me kuchh bhi nahi kah paunga... fir se aata hun ..
bahutbahut badhaayee
arsh
जदीद शायरी का नायाब तोहफा मिल गया
और ये शेर
दर्पण चमक रहा है उसी आबोताब से
चेहरे तो झुर्रियों के निशानों से कट गए
डायरी में संकलित, निज़ामत में काम आयेगा
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
'सर्वत' जब आफताब उगाने की फ़िक्र थी
सब लोग उल्टे सीधे बहानों से कट गए
एक से बढ़ कर एक ........ आम आदमी के जीवन को छू कर गुज़रते हुवे शेर ........ मज़ा आ गया ......
बुजदिल कहूं उन्हें कि शहीदों में जोड़ लूँ
वो आदमी जो ठौर ठिकानों से कट गए
क्या कहूं...एक से बढ के एक शे’र..बार पढी गज़ल लेकिन दिल नही भरा. एक कहानी मेरे ब्लॉग पर आपके इन्तज़ार में है.
aap ki gajalen vastav me hraday ko choo jatee hain.
पूरी गज़ल ही लाजवाब है फिर मेरे लिये अभी गज़ल काला अक्षर ही है मै इतनी लाजवाब और उपर से आपकी गज़ल हो क्या कह सकती हूँ सूरज को दीपक नहीं दिखा सकती बहुत बहुत बधाई
आपकी गज़लों पर प्रतिक्रिया पढकर अलग ही आनन्द प्राप्त होता है. दूसरा और छ्ठा शेर कमाल के हैं जितनी बार वाह-वाह की जाय कम है. सारा कमाल रदीफ और उसके लाजवाब निर्वाह मएं छिपा हुआ है. आपका ग़ज़लों को फिर से प्रस्तुत करने का फैसला सही रहा. अलग ही आनन्द आ रहा है.
रोटी, लिबास और मकानों से कट गए
हम सीधे सादे लोग सयानों से कट गए
फिर यूँ हुआ कि सबने उठा ली क़सम यहाँ
फिर यूँ हुआ कि लोग ज़बानों से कट गए
bahut khoob,sarvat ji, sabhi sher behatareen.
sarvat ji mere blog par aane ke liye hardik dhanyawaad, der se hi sahi, asha hai ab sab kushal se honge. aapke achche swasthya ki kamna ke sath punah dhanyawaad.
रोटी, लिबास और मकानों से कट गए
हम सीधे सादे लोग सयानों से कट गए..
लाजवाब...
बुजदिल कहूं उन्हें कि शहीदों में जोड़ लूँ
वो आदमी जो ठौर ठिकानों से कट गए
पटवारी, साहूकार, मवेशी, ज़मीनदार
खूराक मिल गयी तो किसानों से कट गए
दर्पण चमक रहा है उसी आबोताब से
चेहरे तो झुर्रियों के निशानों से कट गए
'सर्वत' जब आफताब उगाने की फ़िक्र थी
सब लोग उल्टे सीधे बहानों से कट गए
देर से ब्लाग पर आने के लिए माफी चाहता हूं। गजल बहुत शानदार बधाई
फिर से, बलाग पर अपना मोबाइल नंबर दे , बात होती रहेगी
रोटी, लिबास और मकानों से कट गए
हम सीधे सादे लोग सयानों से कट गए
वाह..वाह......!!
थोडा सा बदल दूँ....हम सीधे सादे लोग मुहब्बत में लुट गए ...''
फिर यूँ हुआ कि सबने उठा ली क़सम यहाँ
फिर यूँ हुआ कि लोग ज़बानों से कट गए
बहुत खूब......!!
दर्पण चमक रहा है उसी आबोताब से
चेहरे तो झुर्रियों के निशानों से कट गए
दर्पण तो चमकेगा ही भला उसने क्या गुनाह किया .....!!
'सर्वत' जब आफताब उगाने की फ़िक्र थी
सब लोग उल्टे सीधे बहानों से कट गए
सही वक़्त पे सही शे'र कह गए आप तो .....बहुत खूब.....!!
पटवारी, साहूकार, मवेशी, ज़मीनदार
खूराक मिल गयी तो किसानों से कट गए
सर्वत साहब...सुभान अल्लाह...क्या ग़ज़ल कही है...किस शेर की तारीफ़ करूँ...हर शेर पर सर धुन रहा हूँ...कमाल कर दिया है आपने...लाजवाब...वाह...
नीरज
aapki nayi gzl ka
besbree se intzaar ho rahaa hai
j a n a a b . . . !!
sarwat ji,
why don't you publish these in a book?
you write stuff which directly touches the heart.
aapki pichchli gazal ki ye lines,
आप अगर मर्द हैं तो खुश मत हों
काम आती है सिर्फ़ नामर्दी
फिर कहीं बेकसूर ढेर हुए
आज कितनी अकड़ में है वर्दी
sahi maayne mein sirf ek gehri soch rakhne waala insaan hi likh sakta hai.
Harek lafz ne panktiyon ko nikhara hai...mai nishabd hun!
ये कहा तो क्या कहा,"तुम लाजवाब हो "
ग़ज़ल हुस्न है तो तुम उसका शबाब हो
हैरान हूँ मैं तेरे दिल की आग देख कर
तुम सूरते गुलाब में, एक ""आफ़ताब"" हो
कितना कटे हो तुम ज़माने की धार से
इसलिए हर खार का करारा जवाब हो
सर्वत साहब ,
आप स्वस्थ और सानंद रहे ,
यूँ ही लिखते रहे ,यही प्रार्थना है
ऊपर लिखे शेरों के सिवा
अब और अल्फाज़ नहीं मिल रहे हैं
पटवारी, साहूकार, मवेशी, ज़मीनदार
खूराक मिल गयी तो किसानों से कट गए
aapake blog par aapaki gazalon samet kai rachanayen padhi bahut marmik anubhuti hui|
meri shubhkamnayen.
saadar
amit
एक टिप्पणी भेजें