सौ जतन से क्या बोलें
अपने मन से क्या बोलें
उम्र भर खमोशी थी
अन्जुमन से क्या बोलें
आबले हैं पैरों में
हम थकन से क्या बोलें
याद है हमें फ़रहाद
कोहकन से क्या बोलें
दार तक चले आए
इस रसन से क्या बोलें
गुफ़्तगू है सूरज से
हर किरन से क्या बोलें
सच की पैरवी की है
अब दहन से क्या बोलें
हमज़बां नहीं 'सर्वत'
हमवतन से क्या बोलें.
25 टिप्पणियां:
हमज़बां नहीं 'सर्वत'
हमवतन से क्या बोलें.
क्या अंदाज़ है आपका ! हर लाइन मारक असर रखती है ! हार्दिक शुभकामनायें आपको !!
बहुत दिनों बाद आपको पढ़ने का अवसर मिला.
आपने लिखा
...गुफ्तगू है सूरज से
हर किरण से क्या बोलें...
बहुत सुन्दर और प्रभावी.
दुनाली पर देखें
चलने की ख्वाहिश...
बहुत सुन्दर रचना।
बेहतरीन लिखा है सर!
सादर
सच की पैरवी की है
अब दहन से क्या बोलें
बहुत सुन्दर. लम्बे समय के बाद वापसी हुई है आपकी, सुन्दर ग़ज़ल के साथ.
गुफ़्तगू है सूरज से
हर किरन से क्या बोलें ..
बहुत खूब ... सर्वत साहब कई दिनों बाद आज आपकी ग़ज़ल पढ़ी है .... पर हमेशा की तरह कमाल के तेवर हैं हर शेर के ...
आग रखते हैं आप अपनी कलम में ...
भाई हम तो पहले ही तारीफ कर चुके हैं इस ग़ज़ल की| जबरदस्त ग़ज़ल है|
गुफ़्तगू है सूरज से
हर किरन से क्या बोलें
भाई जान कहाँ रहे इतने दिन आप...आये हैं तो क्या खूबसूरत ग़ज़ल ले कर आये हैं...सुभान अल्लाह...ऐसा खूबसूरत कलाम पढ़े अरसा हो गया था....अब इतनी देरी भी ठीक नहीं...आते रहें दस्तक देते रहें...हौंसला बना रहता है...
Neeraj
गुफ़्तगू है सूरज से
हर किरन से क्या बोलें
बहुत ही सुन्दर रचना
दिल को छू गयी
गुफ़्तगू है सूरज से
हर किरन से क्या बोलें
सच की पैरवी की है
अब दहन से क्या बोलें
बहुत ख़ूब सर्वत भाई ,,,,इतने दिनों बाद आप के ब्लॉग पर रौनक़ आई
हमज़बां नहीं 'सर्वत'
हमवतन से क्या बोलें.
बेहतरीन..........दिल को छू गयी
गुफ़्तगू है सूरज से
हर किरन से क्या बोलें
बहुत खूबसूरत शेर कहा है... वाह !
ग़ज़ल का लुत्फ़ मिल रहा है !!
कल 17/06/2011 को आपकी कोई पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है.
आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत है .
धन्यवाद!
नयी-पुरानी हलचल
अरसे बाद मैं सक्रिय हुआ हूँ.....! ग़ज़ल पढ़ी... उस्ताद शायरों से कुछ नया सीखने को मिलता रहता है... !
सौ जतन से क्या बोलें
अपने मन से क्या बोलें
उम्र भर खमोशी थी
अन्जुमन से क्या बोलें
आबले हैं पैरों में
हम थकन से क्या बोलें
वाह वाह....!!!!आब्लों की खामोश शिकायत का यह तरीका बहुत खूब है.
सुन्दर ग़ज़ल.....एक शेर ने खासा प्रभावित किया
गुफ़्तगू है सूरज से
हर किरन से क्या बोलें
धन्यवाद
http://www.aarambhan.blogspot.com
bahut achchha laga padhkar....wah
गुफ़्तगू है सूरज से
हर किरन से क्या बोलें
सच की पैरवी की है
अब दहन से क्या बोलें
बहुत खूब सर जी ,
लाज़वाब प्रस्तुति !!!
सच की पैरवी की है
अब दहन से क्या बोलें
हमज़बां नहीं 'सर्वत'
हमवतन से क्या बोलें.
बेहतरीन ।
आपने तो बस खामोश कर डाला
अब हम वचन से क्या बोलें ।
हमज़बां नहीं 'सर्वत'
हमवतन से क्या बोलें.
यही सबसे बड़ा दर्द है.
-
हम फुर्सत में आपके पन्ने तक पहुँचते हैं, और आपके तेवर देख कुछ नहीं कहते.
सच की पैरवी की है
अब दहन से क्या बोलें
आबले हैं पैरों में
हम थकन से क्या बोलें
क्या कहूँ मै !!
♥
आदरणीय भाईजान सर्वत जमाल जी
सस्नेहाभिवादन !
बहुत समय बाद लिख पा रहा हूं …
यह ग़ज़ल पढ़ तो शायद पहले भी जा चुका हूं ।
आज कई कई बार पढ़ा … खो गया हूं , डूब गया हूं ! सौ सलाम !!
आबले हैं पैरों में
हम थकन से क्या बोलें
याद है हमें फ़रहाद
कोहकन से क्या बोलें
दार तक चले आए
इस रसन से क्या बोलें
गुफ़्तगू है सूरज से
हर किरन से क्या बोलें
सच की पैरवी की है
अब दहन से क्या बोलें
शब्द नहीं हैं मेरे पास … … …
आशा है , आप सपरिवार स्वस्थ-सानंद हैं ।
हार्दिक शुभकामनाओं मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
उम्र भर खमोशी थी
अन्जुमन से क्या बोलें bhaut hi behtreen prstuti.....
पहली बार आपको पढ़ा ....
ग़ज़ल का शब्द शब्द बेहद खूबसूरती से लिखा है आपने ...आभार
बहुत खूब!
गुफ़्तगू है सूरज से
हर किरन से क्या बोलें
सच की पैरवी की है
अब दहन से क्या बोलें
..बहुत खूब!...आभार
गुफ़्तगू है सूरज से
हर किरन से क्या बोलें
Kya baat hai!
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