कितने दिन, चार, आठ, दस, फिर बस
रास अगर आ गया कफस, फिर बस
जम के बरसात कैसे होती है
हद से बाहर गयी उमस फिर बस
तेज़ आंधी का घर है रेगिस्तान
अपने खेमे की डोर कस, फिर बस
हादसे, वाक़यात, चर्चाएँ
लोग होते हैं टस से मस, फिर बस
सब के हालात पर सजावट थी
तुम ने रक्खा ही जस का तस, फिर बस
थी गुलामों की आरजू, तामीर
लेकिन आक़ा का हुक्म बस, फिर बस
सौ अरब काम हों तो दस निकलें
उम्र कितनी है, सौ बरस, फिर बस
Swelling, Anti Ageing, Wrinkles, Boost Energy, Hair Growth Etc.Treatmen...
-
इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष
सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व
किस...
5 वर्ष पहले
30 टिप्पणियां:
सर्वत जी कमाल की रचना...ग़ज़ल केवल शब्द और भाव से ही नही संपन्न है बल्कि लय से भी दिल जीत लेता है..
बेहद उम्दा ग़ज़ल..पढ़ कर ही लग जाता है ऐसी ग़ज़ल की रचना किसी साधारण रचनाकार से संभव ही नही....
एक लाइन मेरे ओर से स्वीकार करें..
ग़ज़ल की बारीक़ियाँ कोई आप से सीखे,
कलम उठाए,बैठे,लिखे,फिर बस,
सर्वत जी दिल से प्रणाम स्वीकारें...
थी गुलामों की आरजू, तामीर
लेकिन आक़ा का हुक्म बस, फिर बस
बहुत ख़ूब ,हालात की बेह्तरीन अक्कासी
भाई जी, छा गये!! बस्स!!
एक बेहतरीन कश लगाया आपने.
तेज़ आंधी का घर है रेगिस्तान
अपने खेमे की डोर कस, फिर बस
बहुत खूब. लम्बे अन्तराल के बाद खूबसूरत गज़ल के साथ आपकी वापसी का स्वागत है.
"unse milne ki jo tamannaa thi ,
muhabbat ke khanhar ko dekhaa ,aur bas ."
veerubhai1947.blogspot.com
mar-havaa ,kyaa khoob kahi hai "gazal "
AB KARO NA BAS
wow achi rachan he
aap ko badhai
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
थी गुलामों की आरजू, तामीर
लेकिन आक़ा का हुक्म बस, फिर बस
जनाब क्य बात है, बहुत सुंदर जी.
धन्यवाद
bahut sundar bahvon se saheji huyi gazal.
बेहतरीन ग़ज़ल, बह्र अच्छी, अदायगी अच्छी और काफ़िए का चुनाव माशा-अल्लाह!
ज़मीन-ए-ग़ज़ल : सुब्हान-अल्लाह!
जारी रहिए, इंशा-अल्लाह!
आप आये बहार आई :)
अब तो नियमित रहेंगे ना :)
मुझे ये शेर पसंद आया
जम के बरसात कैसे होती है
हद से बाहर गयी उमस फिर बस
क्या बात है ! क्या बात है !
और कुछ नहीं कहना , इसके सिवाय कि जिसको कहते हैं कि मजा आ गया
हादसे, वाक़यात, चर्चाएँ
लोग होते हैं टस से मस, फिर बस
जम के बरसात कैसे होती है
हद से बाहर गयी उमस फिर बस
क्या जमाया है । वाह !
हादसे, वाक़यात, चर्चाएँ
लोग होते हैं टस से मस, फिर बस
क्या मर्म को छुआ है आपने
बेहतरीन
सौ अरब काम हों तो दस निकलें
उम्र कितनी है, सौ बरस, फिर बस ..
सर्वत साहब .. आप जेसे ग़ज़ल कार ही ऐसी बेहतरीन ग़ज़लें कह सकता है ... ये काफिया रदीफ़ सब के बस की बात नही ... इतनी गहरी बातों को बस एक शेर में बाँधना भी आसान नही पर ये फन आपमे मौजूद है ...
उफ़्फ़्फ़...ग़ज़ल की इस अद्भुत नायाब और एक दम दुर्लभ जमीन पर तो हम लोट-लोट हुये जा रहे हैं। नमन है गुरूवर इस अनूठी जमीन के लिये। रदीफ़ की बस और काफ़िये तो बस बस...
इस रदीफ़ को निभाना आपका ही सामर्थ्य है।
जबर्दस्त ग़ज़ल सर जी..नये-नये शेर..और जुदा अंदाज..खासकर रदीफ़ तो फिर बस एकदम्मे कम्माल ही है!
हैट्स ऑफ़!
हादसे, वाक़यात, चर्चाएँ
लोग होते हैं टस से मस, फिर बस
वाह जी वाह क्या मुकम्मल फ़रमाया..........रदीफ़-काफिया सब कुछ अद्भुत !.........शरवत साहब हम तो फैन हैं आपके इस जादूगरी के.......! मुक़र्रर
bahut khoob.......
जम के बरसात कैसे होती है
हद से बाहर गयी उमस, फिर बस
.......
खूबसूरत कमाल है फ़न का
वाह निकला ज़बां से बस, फिर बस
samjhane ke liye kai baar padhna pada. ek do shabad ab bhi samajh nhi aaye hain... jaise kafas, taamir
अभी तक ठिठका हुआ हूँ इस ग़ज़ल को पढ़ के , जिस बह'र-ओ-वजन पे आपने यह ग़ज़ल कही है ... आपके ही बूते की बात है ..... बस सलाम करता चलूँ आपको ... इस नायाब खयालात के लिए... यही कहूँगा के पुराने खँडहर की एक ईंट नयी मकानों के बराबर ....
अर्श
इस पर कुछ कहूँ अगर
तो वो होगा बे-असर !!
ये हर्फ़ यूँ बहते हैं गोया
सरर सरर सरर सरर !!
सर्वत का इम्तेहाँ न लीजै
वो है हर्फों का इक बसर !!
सूरज को दीया दिखाऊं तौबा
तारीफ कैसे उसकी करूँ मगर !!
हादसे, वाक़यात, चर्चाएँ
लोग होते हैं टस से मस, फिर बस
bahut sundar.shubkamnayen.
Aah! Aapne to gazab hi kar diya!
कमाल कर दिया सर्वत भाई
भाव-काफ़िये और तेरी उड़ान फ़िर बस
श्याम सखा श्याम
हुज़ूर ...
नहीं जानता कि ऐसी नायाब और
मुरस्सा ग़ज़ल से दूर कैसे रह गया मैं
ऐसी दक़ीक़ ज़मीन
और ऐसा तरहदार लहजा
एक एक लफ्ज़ में
की गयी मशक्क़त झलक रही है .....
और ये शेर तो कहन के हिसाब से
बिलकुल जानदार,,,शानदार,,,बेमिसाल....
हादसे, वाक़यात, चर्चाएँ
लोग होते हैं टस से मस, फिर बस
अब सताइश हो भी तो कैसे
बिलकुल बेलाफ्ज़ हूँ दोस्त !!
एकदम हट के. गहरी सोच और बहुत सुंदर.
तेज़ आंधी का घर है रेगिस्तान
अपने खेमे की डोर कस, फिर बस
waah waah ...... dor kas...
हादसे, वाक़यात, चर्चाएँ
लोग होते हैं टस से मस, फिर बस
bahut bahut sach
सब के हालात पर सजावट थी
तुम ने रक्खा ही जस का तस, फिर बस
kya baat hai
थी गुलामों की आरजू, तामीर
लेकिन आक़ा का हुक्म बस, फिर बस
bahut khoob
सौ अरब काम हों तो दस निकलें
उम्र कितनी है, सौ बरस, फिर बस
waah kamaal ka sher
bahut achcha laga aapki gazal padh kar
aise kase hue sher padhkar
bahut sakun lagta hai
लफ़्ज़ों से ये कमाल सिर्फ और सिर्फ आपके ही बस की बात है सर्वत साहब...लाजवाब ग़ज़ल...और बस नहीं अभी और और और...चाहिए..
नीरज
Kya khubsurti bakshi hein har alfaz ko aapne .... Shukriya Sir.... aapse bahut kuch sikhne ko milta hein har baar.
एक टिप्पणी भेजें