मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

गजल - 73

पैदा जब अपनी फ़ौज में गद्दार हो गए
कैसे कहूं कि फ़तह के आसार हो गए

आंधी से टूट जाने का खतरा नजर में था
सारे दरख्त झुकने को तैयार हो गए

तालीम, जहन, ज़ौक, शराफत, अदब, हुनर
दौलत के सामने सभी बेकार हो गए

हैरान कर गया हमें दरिया का यह सलूक
जिनको भंवर में फंसना था, वो पार हो गए

आसूदगी, सुकून मयस्सर थे सब मगर
ज़ंजीर उसके पांव की दीनार हो गए

सर्वत किसी को भी नहीं ख्वाहिश सुकून की
अब लोग वहशतों के तलबगार हो गए




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आप सभी का प्यार, स्नेह लेकर नए वर्ष में प्रवेश कर रहा हूँ. ऊपर वाले से दुआ है कि वर्ष २०१० सब के लिए मंगलकारी और खुशियों से लदा-फंदा हो.

28 टिप्‍पणियां:

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

हैरान कर गया हमें दरिया का यह सलूक
जिनको भंवर में फंसना था, वो पार हो गए

wah sarwat ji, behatareen gazal, badhaai sweekaren.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

गजल के सभी शेर बहुत बढ़िया है।बधाई।

तालीम, जहन, ज़ौक, शराफत, अदब, हुनर
दौलत के सामने सभी बेकार हो गए

राज भाटिय़ा ने कहा…

पैदा जब अपनी फ़ौज में गद्दार हो गए
कैसे कहूं कि फ़तह के आसार हो गए
बहुत सुंदर लगे आप की गजल के सारे शेर
धन्यवाद

अर्कजेश ने कहा…

सभी शेर पसंद आए । वाह !

पैदा जब अपनी फ़ौज में गद्दार हो गए
कैसे कहूं कि फ़तह के आसार हो गए

तालीम, जहन, ज़ौक, शराफत, अदब, हुनर
दौलत के सामने सभी बेकार हो गए

अर्चना तिवारी ने कहा…

आंधी से टूट जाने का खतरा नजर में था
सारे दरख्त झुकने को तैयार हो गए

बहुत सुंदर गजल...

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

सर्वत साहब आदाब,
सबसे अच्छे का फैसला सुना देना,
दूसरे शेर के साथ नाइन्साफी होगी
मतले से लेकर मकते तक
हर एक शेर की हज़ार मुबारकबाद
फिर भी खास तौर पर ये दो शेर
जाने कहां कहां सुनायेंगे हम-
1-
आंधी से टूट जाने का खतरा नजर में था
सारे दरख्त झुकने को तैयार हो गए
2-
हैरान कर गया हमें दरिया का यह सलूक
जिनको भंवर में फंसना था, वो पार हो गए
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

Udan Tashtari ने कहा…

शानदार और जानदार गज़ल है, बहुत खूब!!



--


यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

आपका साधुवाद!!

नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी

"अर्श" ने कहा…

matalaa jis tarah se kubuliyat par hai makte se jaraa jaraa baat aur badhti gayee , har she'r mukammal kuchh she'r behad pasand aaye jis baar baar padhne ka dil kar rahaa hai... karodo mubaarabaad dil se ... aapko padhanaa hameshaa hi achha lagta hai aur kuchh naa kuchh sikne ko bhi milta hai ...


aapka
arsh

संजीव गौतम ने कहा…

dada pranaam
achchhee ghazal hai. mera comp. kharaab hai isliye kuchh naheen kar paa rahaa. ye tip. office se de rahaa hoon.

संजीव गौतम ने कहा…

dada pranaam
achchhee ghazal hai. mera comp. kharaab hai isliye kuchh naheen kar paa rahaa. ye tip. office se de rahaa hoon.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आंधी से टूट जाने का खतरा नजर में था
सारे दरख्त झुकने को तैयार हो गए

तालीम, जहन, ज़ौक, शराफत, अदब, हुनर
दौलत के सामने सभी बेकार हो गए

हैरान कर गया हमें दरिया का यह सलूक
जिनको भंवर में फंसना था, वो पार हो गए

वाह...भाई जान...वाह...एक से बाद कर एक नायाब शेरों से सजी आपकी ये ग़ज़ल कमाल की है...मेरी दिली दाद कबूल करें...
नीरज

daanish ने कहा…

हुज़ूर ....
इस क़ाबिल नहीं हूँ कि इस लाजवाब ग़ज़ल पर
तब्सिरा कोई तब्सिरा कर सकूं .....
वैसे भी पढने के बाद
अभी तो ग़ज़ल के तिलिस्म की
क़ैद में हूँ ..
एक-एक शेर खुद अपनी ओर खींचे लिए
जा रहा है ......

आंधी से टूट जाने का खतरा नजर में था
सारे दरख्त झुकने को तैयार हो गए

तालीम, जहन, ज़ौक, शराफत, अदब, हुनर
दौलत के सामने सभी बेकार हो गए

अब ऐसे सादिक़ अश`आर को bhalaa
कोई कभी भुला पाएगा .....
हरगिज़ नहीं !!

एहल-ए-अदब को
ऐसा नायाब तोहफा अता फरमाने के लिए
आपका बहुत बहुत शुक्रिया जनाब . . .

गौतम राजऋषि ने कहा…

गुरुवर की जय हो! कितने-कितने दिनों बाद आते हैं सर और हम हैं कि बेचैन रहते हैं "सर्वत" वाली ग़ज़लों के लिये...

आपकी लेखनी से उपजा एक और शरारा...अहा!
ग़ज़ब का मतला...और तीसरे शेर की बुनाई ने हतप्रभ कर दिया। उफ़्फ़्फ़!!!

दरिया वाले शेर पर वाह-वाह थम नहीं रही थी कि मक्ते ने होश उड़ा लिये।

साल के आखिरी में इस लाजवाब ग़ज़ल के लिये बहुत-बहुत आभार सर। ग़ज़ल को पढ़ के लगा कि हम कितने तुच्छ हैं अभी। नये साल की ढ़ेर सारी शुभकामनायें आपको इस दुआ के साथ कि आपकी ग़ज़लों का ये खौलता तेवर यूं ही बरकरार रहे सदैव-सदैव के लिये।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

आंधी से टूट जाने का खतरा नजर में था
सारे दरख्त झुकने को तैयार हो गए

तालीम, जहन, ज़ौक, शराफत, अदब, हुनर
दौलत के सामने सभी बेकार हो गए

हैरान कर गया हमें दरिया का यह सलूक
जिनको भंवर में फंसना था, वो पार हो गए

हर शे'र लाजवाब .....!!

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बेहतरीन रचना हर शेर उम्दा
आंधी से टूट जाने का खतरा नजर में था
सारे दरख्त झुकने को तैयार हो गए
सुन्दर रचना के लिए बहुत -बहुत आभार
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं ....

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

mohtaram sarwat sahab ,assalam alaikum ,
samajh nahin paa rahi hoon ki taareef shuru kahan se karoon
aasoodgi sukoon..........is sher ne zahn men halchal machayi to do teen baar ghazal padhni padi har sher apne aap men kuchh aisa samete hue hai jise chhod kar aage badh paana namumkin hai
is ghazal ki kamyabi par mubarakbad ke saath naye saal ki mubarakbad bhi qubool kare

श्रद्धा जैन ने कहा…

आंधी से टूट जाने का खतरा नजर में था
सारे दरख्त झुकने को तैयार हो गए

aha kya baat kahi hai

तालीम, जहन, ज़ौक, शराफत, अदब, हुनर
दौलत के सामने सभी बेकार हो गए

हैरान कर गया हमें दरिया का यह सलूक
जिनको भंवर में फंसना था, वो पार हो गए

waah waah
आसूदगी, सुकून मयस्सर थे सब मगर
ज़ंजीर उसके पांव की दीनार हो गए

सर्वत किसी को भी नहीं ख्वाहिश सुकून की
अब लोग वहशतों के तलबगार हो गए

bahut hi khoobsurat gazal

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

हर शे’र लाजवाब!! बेहतरीन..लेकिन ये शेर तो कमाल का है-
हैरान कर गया हमें दरिया का यह सलूक
जिनको भंवर में फंसना था, वो पार हो गए

Vinashaay sharma ने कहा…

भई वाह बहुत,उम्दा लिखतें हैं,नया साल मुबारक ओरकुट पर तो कह न सका,पर अब कह रहा हूँ,Happy 2010

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

सर्वत जी सोचा था नया कुछ डाला होगा आपने .....एक बार फिर उसी ग़ज़ल का रसास्वाद लिए जा रहे हैं .....!१

उम्मीद है आप नाराज़ नहीं होंगे .....!!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

पैदा जब अपनी फ़ौज में गद्दार हो गए
कैसे कहूं कि फ़तह के आसार हो गए

आंधी से टूट जाने का खतरा नजर में था
सारे दरख्त झुकने को तैयार हो गए

सर्वात साहब आपने तो कत्ल कर दिया..

आगे का हाल न पूछो

मक्ता भी सर चढ़ कर बोल रहा है.


- सुलभ

SURINDER RATTI ने कहा…

Saewat Ji,
NAYA SAAL 2010 MUBARAK HO.
WAAH WAAH KYA KHUBSURAT GHAZAL LIKHI HAI...
पैदा जब अपनी फ़ौज में गद्दार हो गए
कैसे कहूं कि फ़तह के आसार हो गए
Surinder

SURINDER RATTI ने कहा…

Sarwat Ji,
Dhanyavaad aapke comment ke liye, Main aapki baat se sehmat hun, Ghazal ke shastr se bhi vakif hun, main azad sher aur nazm hi likhta hun, Uska kaaran hai ki maine jo ghazalen likhi, likhne ke baad aisa laga kai baar ke main shabdon ke saath anyay kar raha hun, matlab yeh ki jis shabd ko jis jagah per hona chaiye jo padne mein saral ho, kai ghazal likhne ke chakar mein ek sahi shabd ko nikalna padta hai uski jagah dusre shab ko zabardasti thusnewali baat hoti hai, natija aapka jo message hai woh kahin is chakkar mein kho jata hai, aisa mera maanna hai, bas yehi vajah hai main azad nazm hi zayada likhta hun, aaj pehli baar aapke blog per kuchh padne ka mauka mila toh bahut maza aaya, aapki ghazalon mein she'r hain masha allah laajwaab hain, unka taartamya bahut hi badiya hai, ek misre ka dusre jo raabta hai woh bhi badhiya hai. ummid hai aapse ab roz isi tarah mulaqaatein hoti rahengi, kuchh naye lafz sunnay padne ko milenge.
sarwat sahab ek baat aur bhi hai urdu meri zabaan nahin hai, thodi si koshish ki hai...maine...shukriyaa...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

हैरान कर गया हमें दरिया का यह सलूक
जिनको भंवर में फंसना था, वो पार हो गए ..

खुशाम्दीद ..... कमाल के शेर हैं सर्वत साहब ........ उस्तादों की ज़बान से निकला हर लफ्ज़ कुछ न कुछ सिखा जाता है ...... मुआफी चाहता हूँ ........ ६ दिन बाहर था ........ नेट की दुनिया तक पहुँच नही थी इसलिए देरी से आया ...... इस बेमिसाल ग़ज़ल से महरूम रहा .. ....
आपको नाव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएँ ........

कडुवासच ने कहा…

बेहद प्रभावशाली गजल जिसके सभी के सभी शेर लाजबाव हैं,ये शेर...
हैरान कर गया हमें दरिया का यह सलूक
जिनको भंवर में फंसना था, वो पार हो गए
(एक ऎसी अभिव्यक्ति जो अचंभित कर दे किंतु यह सत्य है कभी-कभी हू-ब-हू ऎसा भी हो जाता है बिलकुल इस शेर की तरह ;- रोशनी गर खुदा को ... आंधियों मे चिराग .. ।)
आंधी से टूट जाने का खतरा नजर में था
सारे दरख्त झुकने को तैयार हो गए
(यह शेर वर्तमान हालात को चित्रित कर रहा है पेडों की तरह इंसान के भाव भी बिलकुल ऎसे ही हैं।)

तालीम, जहन, ज़ौक, शराफत, अदब, हुनर
दौलत के सामने सभी बेकार हो गए
(...यह शेर तो गजब ही ढा रहा है बिलकुल सही कहा..."दौलत के सामने सभी बेकार"।)
... बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय गजल, सभी लोगों द्वारा सराही जायेगी,बधाई !!!!

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

सर्वात जी गलती से 'के' छुट गया था ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया ....और कुछ .....??

आक्रोश किस बात का ....अगर गलती हो तो मानूंगी जरुर .....!!

Unknown ने कहा…

तारीफ सारी हो चली यार मुक़म्मल
आगे के लिए हालिया अल्फाज़ नहीं हैं
आवाज़ तेरी जाती है अर्श से आगे
मुझ पे तेरे हुनर के कोई साज़ नहीं हैं
ग़ालिब के बाद और भी आये हैं सुखनवर
पर तंज़ में सर्वत से लाज़वाब नहीं हैं

हर शेर शानदार है
बधाई

ज्योति सिंह ने कहा…

आंधी से टूट जाने का खतरा नजर में था
सारे दरख्त झुकने को तैयार हो गए
aur kisi ke blog par padhkar ye rachna ,hum yahan aane ko tayaar ho gaye .bahut khoob