हर कहानी चार दिन की, बस
जिंदगानी, चार दिन की बस
तज़किरा जितने बरस कर लो
नौजवानी चार दिन की, बस
एक दिन सब लौट आयेंगे
बदगुमानी चार दिन की, बस
हुक्मरां सारे मुसाफिर हैं
राजधानी चार दिन की बस
खून टपका, जम गया, तो क्या
यह निशानी चार दिन की, बस
जब हरम में बांदियाँ आयें
फिर तो रानी चार दिन की, बस
जल्द ही सैलाब फूटेगा
बेज़ुबानी चार दिन की, बस
मुल्क पर हर दिन नया खतरा
सावधानी, चार दिन की, बस
मै
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अगर आपको भारत वर्ष की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद पर थोड़ी सी भी
आस्था है तो आप किसी भी बीमारी के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट के लिए मुझसे बात कर
सकते हैं.
...
5 माह पहले
21 टिप्पणियां:
क्या बात है जनाब...... बहुत खूब ग़ज़ल कही है.
waah behtarin
दुनिया का दस्तूर लिखा है
उलझन का नासूर लिखा है
हर रांझे ने हीर को अपनी
जन्नत की ही हूर लिखा है
हमने दिल का हाल सुनाया
जग ने इसे gurur लिखा है
मौज में बहका मेरा पांव
खबर में इसे सुरूर लिखा है
नहीं करी कोई कोताही
गर्दूं ने भरपूर लिखा है
कैसे कैसे जाम पिलाये
पर साकी को दूर लिखा है
इल्मेसर्वत के सब कायल
हमने भी तुम्हे हुज़ूर लिखा है
छोटी बहर में इतना बड़ा रदीफ़ प्रयोग करना, और वो भी ऐसा रदीफ़
कमाल है
और गजल भी क्या खूब निकली है
पढ़ कर मज़ा आ गया
वीनस केसरी
behtareen.....
क्या खूब लिखा है
हर बात चार दिन की बस
जिन्दगानी है पानी का बुलबुला
रवानी चार दिन की बस
आज के यथार्थ को बयां करती एक अच्छी ग़ज़ल |
सावधानी चार दिन
बेजुबानी चार दिन
क्या आइना दिखाया सर्वत भाई
सर्वत जी कृपया मदद करिए
गूगल के फीड बर्नर से मैं आपकी नई पोस्ट नहीं पढ़ प् रहा हूँ नई पोस्ट शो ही नहीं हो रही है
वीनस केसरी
मुल्क पर हर दिन नया खतरा,
सावधानी, चार दिन की, बस
वाह, भाई सर्वत जी, वाह, क्या करारी और सच्ची बात चंद लफ्जों में इस बेहतरीन और नायब शेर में कह गए.
पुरी ग़ज़ल के लिए भी हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
Sarwat jee kamal kee gajal hai. Badhaee.
आप की गजलें हैं तो बहुत तीखी.मिर्च का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं शायद. एक बात बताऊँ----कितना ही लिख पढ़ लीजिये इस देश और समाज पर कोई असर नहीं पड़ने का. एक बात और इतना सच भी मत लिखा कीजिए, कोई देसी पिस्तौल से फायर कर देगा......फिर!!!!!!!!!!!!!!
अपनी बात को बड़ी कशीदाकारी से कह दिया आपने । आभार ।
हर शेर लाजवाब...उम्दा ग़ज़ल....बहुत बहुत बधाई....
Chhoti bahar men kamaal kar diya aapne.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
अरे ये यकायक भूतनाथ कहाँ आ गया भाई.....ये तो ग़ज़ल का समंदर लगता है....इसमें डूब कर हम मर जायेंगे.....ऐसा लगता है....!!...लाजवाब....यकीनन....अद्भुत....निस्संदेह....शानदार
जबरदस्त...और क्या कहूँ...सोचकर आता हूँ....!!
सर्वत जी जब भी किसी की गज़ल पढती हूँ तो कम्मेन्ट देना चाहती हूँ मगर गज़ल की ABCभी नहीं जानती मैने पहले भी आपकी गज़लें पढी हैं मगर बिना कम्मेन्ट दिये लौट गयी अब सूरज को ओशनी कैसे दिखाऊँ । बहुत सुन्दर लाजवाब गज़लें है। बहुत बहुत बधाई।अप जैसे बडे शब्द शिल्पी का मुझे उत्साहित करना बहुत अच्छा लगा आभार्
जल्द ही सैलाब फूटेगा
बेज़ुबानी चार दिन की, बस
हुज़ूर !
ये शेर ऐसा मन में उतरा क अन्दर की
गुनगुनाहट का हिस्सा ही बन गया है
बहुत खूब सर्वत भाई....
बहुत बड़ा कमाल किया है आपने
एक ही लफ्ज़ ....
काफिया भी ...जुमला भी
वाह !!
---मुफलिस---
Sirf Padhunga.
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Ye Gazal to kamaal hai.
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