साथियो, शुक्रिया...शुक्रिया. मेरी ज्यादतियां भी आप सह रहे हैं. इतने दिनों तक मैं ने कमेन्ट बॉक्स भी बंद रखा और आप लोगों ने मेरी इस उद्दंडता को भी सहन किया. यकीन कीजिए, मुझे खुद इसका बेहद दुःख रहा. जब भी कोई मुझसे कमेन्ट बॉक्स खोल देने को कहता, बेहद पीड़ा होती लेकिन अपनी इस संवेनशील आत्मा को क्या कहूं जो कुछ चीजों को सहन नहीं कर सकी और ....!
खैर, बात-बेबात वाले डॉ.सुभाष राय और चर्चित ब्लागर अविनाश वाचस्पति का जितना भी शुक्रिया अदा करूं, कम है. उन्होंने मुझे संकट से उबारने में जो परिश्रम किया और लगातार न सिर्फ मेरा हौसला बढ़ाया बल्कि धमकी भी दे डाली कि अगर नई पोस्ट और कमेन्ट बॉक्स ओपनिंग नहीं हुई तो अंजाम......!!!
डर गया हूँ, दब गया हूँ आप सब के स्नेह से, हुक्म की तामील कर रहा हूँ:
आराम की सभी को है आदत, करेंगे क्या
यह सल्तनत परस्त बगावत करेंगे क्या
मरने के बाद चार अदद काँधे चाहिएं
कुछ रोज़ बाद लोग ये ज़हमत करेंगे क्या
मजहब की ज़िन्दगी के लिए खून की तलब
हम खून से नहा के इबादत करेंगे क्या
खुद जिनकी हर घड़ी यहाँ खतरे में जान है
वो लोग इस वतन की हिफाजत करेंगे क्या
तक़रीर करने वालों से मेरा सवाल है
जब सामने खड़ी हो मुसीबत, करेंगे क्या!
और.... आज़ादी @ ६३........ मुबारक
Swelling, Anti Ageing, Wrinkles, Boost Energy, Hair Growth Etc.Treatmen...
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इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष
सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व
किस...
5 वर्ष पहले
35 टिप्पणियां:
आदरणीय भाईजान सर्वत एम जमाल साहब
आदाब !
नमस्कार !
आपकी नई ग़ज़ल पढ़ने को मिली ।
शुक्रिया कहने की यहां शायद आवश्यकता नहीं …
सृजनशील रचनाकर की क़लम तो कभी कुंद नहीं होती ,
यह और बात है कि सरस्वती का प्रसाद किसको मिल पाता है !
ग़ज़ल पर कहने का मेरा इतना माद्दा कहां !
हां , जो शे'र मन को छू गया है उसे कोट किए बिना नहीं रह पा रहा …
आराम की सभी को है आदत, करेंगे क्या
यह सल्तनत परस्त बगावत करेंगे क्या
मजहब की ज़िन्दगी के लिए खून की तलब
हम खून से नहा के इबादत करेंगे क्या
तक़रीर करने वालों से मेरा सवाल है
जब सामने खड़ी हो मुसीबत, करेंगे क्या!
म्म्मा'फ़ करें पूरी ग़ज़ल ही कोट करने को मन है …
लिखा ही ऐसा है आपने !
शुभकामनाओं सहित …
आपका ही
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
राजेंद्र जी की बात पूरी तरह से कॉपी पेस्ट करता हूँ
किस शेर की तारीफ की जाय किसकी नहीं....समझ में नहीं आ रहा है...हर शेर मार्के का है
शुक्रिया इतनी खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए
बेहद उम्दा ग़ज़ल !वाक़ई समझना मुश्किल है कि किस शेर की तारीफ़ करें और किस को छोड़ दें
आराम की सभी को है आदत, करेंगे क्या
यह सल्तनत परस्त बग़ावत करेंगे क्या
बेहतरीन मतला,सच्चा शेर
मजहब की ज़िन्दगी के लिए खून की तलब
हम खून से नहा के इबादत करेंगे क्या
वाह !क्या सवाल उठाया गया है ,ये बात अगर लाशों के ताजिर समझ लें तो मसला ख़त्म ही न हो जाए
इन्होंने तो मज़हब को शतरंज का मोहरा बना रखा है इस सिल्सिले से एक शेर पेश ए ख़िदमत है
नज़र में उन की गर मज़हब है इक शतरंज का मोहरा
तो फिर अंजाम कैसा, क्या ,कहां होगा ख़ुदा जाने
बहुत बहुत मुबारकबाद क़ुबूल करें
जो लोग कुछ ज़लील थे निकले जलील वो
उनको दिखा के अपनी ज़हानत करेंगे क्या
सर्वत भी उसी शख़्स में जिसका जमाल है
ये तिफ़्ल भी अब उससे रक़ाबत करेंगे क्या
स्वागत है!
सर्वत जी,
बहुत ही अच्छी गज़ल.
"मजहब की ज़िन्दगी के लिए खून की तलब
हम खून से नहा के इबादत करेंगे क्या"
बहुत पसंद आया.
कविता कोष पर आपकी सभी ग़ज़लें पढ़ी हैं. हर गज़ल पर दिल से "वाह" निकलता है.
गज़ल का हर शेर एक सुलगता हुआ सवाल सा है।
सबसे पहले ये जानकर प्रसन्नता हुई कि आपने टिप्पणियों का बॉक्स फिर से खोल दिया.
दूसरी बात ये कि आपकी अमूल्य ग़ज़ल पढ़ने को मिली.
आप हमेशा मेरे ब्लॉग पर आते हैं और मेरी हौसलाफजाई करते हैं.
मैं पहले ग़ज़ल की विधा से अनजान थी..आपके मार्गदर्शन से ही मैं अपनी रचनाओं को सुधार कर ग़ज़ल का रूप दे सकी ..इसके लिए मैं आपका शुक्रिया कहकर औपचारिकता नहीं करना चाहती ...बस आपका स्नेह ऐसे ही प्राप्त होता रहे और हमारी रचनाओं को मार्गदर्शन मिले यही कामना है .
हर ग़ज़ल की तरह आपकी ये ग़ज़ल भी गरज कर लोगों को आगाह कर रही है....
" आराम की सभी को है आदत, करेंगे क्या
यह सल्तनत परस्त बगावत करेंगे क्या " ....सौ फ़ीसदी सही कहा आपने...
रमज़ान और नागपंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं !!!
सल्तनत परस्त बगावत करेंगे क्या
सल्तनत परस्त कब बगावत किये हैं भला ..
गहराई तक उतरती रचना
आदाब
बताइए भला जब मित्र लोग इतना चाहते हों तो आप इस मुहब्बत के खजाने के छोड़ कर जा सकत हैं नहीं। कर्ज का बोझ संभलेगा नहीं।
नुक्कड़ पर आपके स्पश्टीकरण से बात आइने की तरफ साफ हो गयी। कोई सामने भले न कहे लेकिन सब अपने मन में जानते हैं कि गलती तो थी ही। खैर ईश्वर सबको सन्मति दे।
ग़ज़ल पर क्या कहा जाय। इसको तो गुन रहा हूं और सोच रहा हूं कि मैं ग़ज़लें फिर से कब लिखूंगा।
मजहब की ज़िन्दगी के लिए खून की तलब
हम खून से नहा के इबादत करेंगे क्या
लम्बे इन्तज़ार के बाद आपकी गज़ल पढने को मिली, आभार.
खुद जिनकी हर घड़ी यहाँ खतरे में जान है
वो लोग इस वतन की हिफाजत करेंगे क्या
जमाल साहब य़ाःई लोग जिन की जान खतरे मै हि इस देश की हिफ़ाजत कर सकते है, बस खुदा उन्हे इतनी अकल दे कि जब मरना ही है तो खतरो को मार कर ही मरो...... मेरे जेसे बहुत पागल मिलेगे....
बाकी आप के शॆर हमारी तरीफ़ो से बहुत बढ कर है, हमारे शव्द भी बहुत कम पडते है,इन शेरो की इज्जत मै
मजहब की ज़िन्दगी के लिए खून की तलब
हम खून से नहा के इबादत करेंगे क्या...
ज़िन्दाबाद.... सर्वत साहब,
क्या कहने ....वाह...वाह
कभी न भुलाए जाने वाला शेर दिया है
मुबारकबाद कबूल फ़रमाएं.
खुद जिनकी हर घड़ी यहाँ खतरे में जान है
वो लोग इस वतन की हिफाजत करेंगे क्या...
ये अजीब इत्तेफ़ाक है..
कि तरही ग़ज़ल में एक शेर का मफ़हूम यही है!!!
चलिए हटा लेते हैं जनाब...
श्क्रिया उन का जिन्हों ने आपको सजा सुनाई वर्ना हम लोगों की आप कहाँ सुनने वाले थे। गज़ल तो गज़ब है
मरने के बाद चार अदद काँधे चाहिएं
कुछ रोज़ बाद लोग ये ज़हमत करेंगे क्या
मजहब की ज़िन्दगी के लिए खून की तलब
हम खून से नहा के इबादत करेंगे क्या
खुद जिनकी हर घड़ी यहाँ खतरे में जान है
वो लोग इस वतन की हिफाजत करेंगे क्या
तीनो शेर क्या कहूँ लाजवाब हैं धन्यवाद। अब और सजा से बचना है तो और गज़ल कहनी पडेगी। शुभकामनायें
शानदार , बेहतरीन .... कमाल की गज़ल ||
हर शेर एक से बढकर एक ||
किस शेर की तारीफ़ की जाये
और की जाये तो तारीफ़ के लिए
शब्द कहाँ से लाया जाये ||
मजहब की ज़िन्दगी के लिए खून की तलब
हम खून से नहा के इबादत करेंगे क्या
खुद जिनकी हर घड़ी यहाँ खतरे में जान है
वो लोग इस वतन की हिफाजत करेंगे क्या
ये दो शेर अपने साथ लिए जा रहा हूँ ||
खुद जिनकी हर घड़ी यहाँ खतरे में जान है
वो लोग इस वतन की हिफाजत करेंगे क्या
जिनकी जान खतरे में है वो ही इस वतन की हिफाजत कर सकते हैं
लेकिन ऐसे लोगों को हर-हाल में पूरे देश में एकजुट होना होगा ..
देश को आजादी भी उन्होंने ही दिलाई थी जिनकी जान हमेशा खतरे में थी ..
ये और बात है की आज विश्वाश घातियों ने उस आजादी को गुलामी से भी बदतर बना दिया है ...
खुद जिनकी हर घड़ी यहाँ खतरे में जान है
वो लोग इस वतन की हिफाजत करेंगे क्या
bahut khoob likha hai aapne...
Meri Nayi Kavita aapke Comments ka intzar Kar Rahi hai.....
A Silent Silence : Ye Kya Takdir Hai...
Banned Area News : Kareena Kapoor And Karan Johar At Mr. Nari Hira's Bash
Sarwat Bhai...aadaab.
aapse late parichay hua.....behtreen kahte hai aap...badhai..
आराम की सभी को है आदत, करेंगे क्या
यह सल्तनत परस्त बगावत करेंगे क्या
खुद जिनकी हर घड़ी यहाँ खतरे में जान है
वो लोग इस वतन की हिफाजत करेंगे क्या
सर्वत जी लाजवाब कर दिया ...
कहने को कुछ नहीं बचा
मजहब की ज़िन्दगी के लिए खून की तलब
हम खून से नहा के इबादत करेंगे क्या
वाह-वा ! सर्वत साहब...
क्या पाएदार शेर निकाला है
पढ़ते ही
आज के हालात की तस्वीर खिंच जाती है...
और
"खुद जिनकी हर घड़ी यहाँ खतरे में जान है.."
भी
इसी मौज़ू को आगे ले जा रहा है
निहायत ही अच्छी ग़ज़ल के लिए
मुबारकबाद
ऐसी बेहतरीन ग़ज़ल सिर्फ और सर्वत साहब ही लिख सकते हैं मियां...आज आपके ब्लॉग पर आ कर कलेजे और आँखों को ठंडक पड़ गयी...हुज़ूर अपनी पुरानी शान के साथ लौट आये हैं...ग़ज़ल दिल में समा गयी है...और क्या कहूँ...वाह. हम तो आपके पुराने मुरीद हैं और हमेशा रहेंगे..
नीरज
मरने के बाद चार अदद काँधे चाहिएं
कुछ रोज़ बाद लोग ये ज़हमत करेंगे क्या ..
सर्वत साहब मेरा मानना सही ही है की ऐसी बेहतरीन ग़ज़ल आपके सिवा किसी और के बस की बात नही ... जीवन के सच को जितना बारीकी से आप पकड़ते हैं कोई दूसरा नही पकड़ पाता ... शिल्प, कथ्य और सामाजिक हालात को आप हूबहू उतारते हैं ...
सलाम है मेरा ... आज़ादी का जश्न मुबारक हो ...
मरने के बाद चार अदद काँधे चाहिएं
कुछ रोज़ बाद लोग ये ज़हमत करेंगे क्या
yun to gazal puri hi teekhi hai
magar mujhe ye sher bahut pasand aaya.. aapki shaili man ko prabhavit karti hai..
मज़हब की ज़िन्दगी के लिए...
बहुत बहुत करारा शे'र...आपकी कलम की दाद देनी पड़ेगी जनाब...
और आखिरी शे'र में जो सवाल किया है...
तक़रीर करने वालों से मेरा सवाल है
जब सामने खड़ी हो मुसीबत, करेंगे क्या!
कमाल का है..
मरने के बाद चार अदद काँधे चाहिएं
कुछ रोज़ बाद लोग ये ज़हमत करेंगे क्या ....आने वाले वक़्त कि तस्वीर पेश कर दी आपने..
आराम की सभी को है आदत, करेंगे क्या
यह सल्तनत परस्त बगावत करेंगे क्या
मतला भी जोर का बांधा है...
मरने के बाद चार अदद काँधे चाहिएं
कुछ रोज़ बाद लोग ये ज़हमत करेंगे क्या
मजहब की ज़िन्दगी के लिए खून की तलब
हम खून से नहा के इबादत करेंगे क्या
mujhe ye jyada pasand aaye sarvat jii
मरने के बाद चार अदद काँधे चाहिएं
कुछ रोज़ बाद लोग ये ज़हमत करेंगे क्या
बेहतरीन लेख
sarwat bhai
aapki mail to nahi mili
rasta bhatak gayi shaayad
september me aane ka aapka karyakram kitna pakka hai keh nahi sakta par main 16 october ko lucknow aa raha hoon
ek kavi sammelan hai
aadab
वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह
ये ग़ज़ल है या कि ,किसी जिंन्दगी की आह
धमाकेदार वापसी पर शुभ कामनाएं
मजहब की ज़िन्दगी के लिए खून की तलब
हम खून से नहा के इबादत करेंगे क्या
सर्वत भाई
कहने को कुछ बचा नहीं सब यार कह गए
मानी ए ग़ज़ल ये वो खबरदार कह गए
औरों का खूं बहाया तो इबादत कहाँ रही
मजहब से भी गए वो उनके इमान बह गए
सर्वत की शान पर हुए कुर्बान यार हम
वो लौट के आया ,, कई तूफ़ान ढह गए
मरने के बाद चार अदद काँधे चाहिएं
कुछ रोज़ बाद लोग ये ज़हमत करेंगे क्या
अछी गज़ल क अछा शेर !
बधाई !
saari gazal kya kahane
magar is talkh such ko kyon ujagar kar diya sarwat bhai
मरने के बाद चार अदद काँधे चाहिएं
कुछ रोज़ बाद लोग ये ज़हमत करेंगे क्या
अद्भुत...अद्भुत...अद्भुत...अद्भुत...अद्भुत...अद्भुत...अद्भुत...अद्भुत...अद्भुत...अद्भुत...अद्भुत...इससे एक शब्द भी ज्यादा कहा तो तो वह बहुत कम हो जाएगा...दरअसल सूरज को कोई रौशनी दिखाएगा तो खुद बेदम हो जाएगा...सर्वत इक शेर मैं कहा चाहूँ हूँ तुझसे....शर्त ये है की तू खिलखिलाएगा...........!!!!
shi khaa aaj ke nojvaan or duniya ke logon ki hqiqt bs yhi he aapne schchaayi byaan ki he mubaark ho. akhtar khaan akela kota rajsthan
bahut achi ghazal huee hai janaab....!!!
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