बुधवार, 23 सितंबर 2009

गजल- 70

गर हवा में नमी नहीं होती
एक पत्ती हरी नहीं होती


आप किसके लिए परीशां हैं
आग से दोस्ती नहीं होती


हाकिमे-वक्त को सलाम करें
हम से यह बुजदिली नहीं होती


कुछ घरों से धुंआ ही उठता है
हर जगह रोशनी नहीं होती


होंगे सच्चाई के मुहाफिज़ आप
सब पे दीवानगी नहीं होती


साए जिस्मों से भी निकलते हैं
किस जगह तीरगी नहीं होती


सब की चौखट पे सर झुकाते फिरो
इस तरह बन्दगी नहीं होती

मसअले हैं तो इनका हल ढूंढो
फ़िक्र आवारगी नहीं होती

जहन तो सोचने की खातिर है
हम से यह भूल भी नहीं होती

हादसों का तुम्हीं करो मातम
हम से संजीदगी नहीं होती

14 टिप्‍पणियां:

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत खुब, बहुत ही सुन्दर व उम्दा रचना। बहुत-बहुत बधाई

नीरज गोस्वामी ने कहा…

किसी एक शेर को इस ग़ज़ल में से चुनना बहुत मुश्किल काम है क्यूँ की इस ग़ज़ल के सारे शेर एक से बढ़ कर एक हैं...निहायत खूबसूरत ग़ज़ल के लिए सर्वत जी दिली दाद कबूल फरमाएं...
नीरज

Renu goel ने कहा…

जिसपे सर न झुक जाए उसे दर नहीं कहते
हर दर पे जो झुक जाए उसे सर नहीं कहते....

कुछ ऐसा ही कहती है आपकी ग़ज़ल ....
खूबसूरत ग़ज़ल.....

gazalkbahane ने कहा…

हदिसों का.....
सबसे खूबसूरत शे‘र इस सुन्दर गज़ल का

बेनामी ने कहा…

शुक्रिया जो लिखते हैं आप
वरना कलम की शान नही होती...

दुनाली का सलाम

संजीव गौतम ने कहा…

pranaam dada
Gahazal achchhee hai lekin is bar man kaa sher gaayab hai.

गर्दूं-गाफिल ने कहा…

किसी एक शेर को इस ग़ज़ल में से चुनना बहुत मुश्किल काम है क्यूँ की इस ग़ज़ल के सारे शेर एक से बढ़ कर एक हैं...
शाहे ग़ज़ल की शान में कशीदा मैं क्या पढूं
हर शेर जैसे उतरा है सीधे आसमान से

Unknown ने कहा…

नहुत सुन्दर गजल कही आपने ....मैं भी लिखता हूँ पर मेरी उर्दू ज्याद अछि नहीं है ,,इस बारे मैं कोई सुझाव्व दीजिए , उर्दू से गजल मैं एक संजीदगी आ जाती है,,,, अपना मोबाइल नंबर भी दिओजिए , आपसे जरा बात करना चाहता हूँ , मेरा नंबर है 9911602014

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

हाकिमें वक्त को सलाम करें
हमसे ये बुजदिली नहीं होती

बहुत सही कहा आपने और इसका खामियाजा जो अब तक भुगतना पड़ा उसके डिटेल अगली ग़ज़ल में ही पेश कर रहे हैं न, क्योंकि अब तक ऐसे हकीमों ने तंग कर ही रखा होगा............

छोटे बहार में पूरी ग़ज़ल बहुत ही बेहतरीन लगी.
हार्दिक आभार.

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

Naveen Tyagi ने कहा…

bahut achchhi gajal hai.

Asha Joglekar ने कहा…

सब की चौखट पे सर झुकाते फिरो
इस तरह बन्दगी नहीं होती
Bahut khoob Sarwat jee.

Satish Saxena ने कहा…

काश ये शब्द मिल गए होते ,
यह ग़ज़ल मेरे नाम से होती !

हर शब्द अपना सा लगता है, दिल में उतर गयी यह रचना , शुभकामनायें भाई जी !!

shama ने कहा…

Aapse sanjeedgee nahee hotee hogee...bar narazgee kaa ehsaas to mil jata hai!
Aadhe ghante ke 'page load error' ke baad pahunch payee...!
' dostonkee majburiyan bhee samajhe,
galat fehmee ke shikar na bana karen!'

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

हम से संजीदगी नहीं होती ....

ढेरो दाद है आज तो...