गर हवा में नमी नहीं होती
एक पत्ती हरी नहीं होती
आप किसके लिए परीशां हैं
आग से दोस्ती नहीं होती
हाकिमे-वक्त को सलाम करें
हम से यह बुजदिली नहीं होती
कुछ घरों से धुंआ ही उठता है
हर जगह रोशनी नहीं होती
होंगे सच्चाई के मुहाफिज़ आप
सब पे दीवानगी नहीं होती
साए जिस्मों से भी निकलते हैं
किस जगह तीरगी नहीं होती
सब की चौखट पे सर झुकाते फिरो
इस तरह बन्दगी नहीं होती
मसअले हैं तो इनका हल ढूंढो
फ़िक्र आवारगी नहीं होती
जहन तो सोचने की खातिर है
हम से यह भूल भी नहीं होती
हादसों का तुम्हीं करो मातम
हम से संजीदगी नहीं होती
मै
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आस्था है तो आप किसी भी बीमारी के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट के लिए मुझसे बात कर
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...
5 माह पहले
14 टिप्पणियां:
बहुत खुब, बहुत ही सुन्दर व उम्दा रचना। बहुत-बहुत बधाई
किसी एक शेर को इस ग़ज़ल में से चुनना बहुत मुश्किल काम है क्यूँ की इस ग़ज़ल के सारे शेर एक से बढ़ कर एक हैं...निहायत खूबसूरत ग़ज़ल के लिए सर्वत जी दिली दाद कबूल फरमाएं...
नीरज
जिसपे सर न झुक जाए उसे दर नहीं कहते
हर दर पे जो झुक जाए उसे सर नहीं कहते....
कुछ ऐसा ही कहती है आपकी ग़ज़ल ....
खूबसूरत ग़ज़ल.....
हदिसों का.....
सबसे खूबसूरत शे‘र इस सुन्दर गज़ल का
शुक्रिया जो लिखते हैं आप
वरना कलम की शान नही होती...
दुनाली का सलाम
pranaam dada
Gahazal achchhee hai lekin is bar man kaa sher gaayab hai.
किसी एक शेर को इस ग़ज़ल में से चुनना बहुत मुश्किल काम है क्यूँ की इस ग़ज़ल के सारे शेर एक से बढ़ कर एक हैं...
शाहे ग़ज़ल की शान में कशीदा मैं क्या पढूं
हर शेर जैसे उतरा है सीधे आसमान से
नहुत सुन्दर गजल कही आपने ....मैं भी लिखता हूँ पर मेरी उर्दू ज्याद अछि नहीं है ,,इस बारे मैं कोई सुझाव्व दीजिए , उर्दू से गजल मैं एक संजीदगी आ जाती है,,,, अपना मोबाइल नंबर भी दिओजिए , आपसे जरा बात करना चाहता हूँ , मेरा नंबर है 9911602014
हाकिमें वक्त को सलाम करें
हमसे ये बुजदिली नहीं होती
बहुत सही कहा आपने और इसका खामियाजा जो अब तक भुगतना पड़ा उसके डिटेल अगली ग़ज़ल में ही पेश कर रहे हैं न, क्योंकि अब तक ऐसे हकीमों ने तंग कर ही रखा होगा............
छोटे बहार में पूरी ग़ज़ल बहुत ही बेहतरीन लगी.
हार्दिक आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
bahut achchhi gajal hai.
सब की चौखट पे सर झुकाते फिरो
इस तरह बन्दगी नहीं होती
Bahut khoob Sarwat jee.
काश ये शब्द मिल गए होते ,
यह ग़ज़ल मेरे नाम से होती !
हर शब्द अपना सा लगता है, दिल में उतर गयी यह रचना , शुभकामनायें भाई जी !!
Aapse sanjeedgee nahee hotee hogee...bar narazgee kaa ehsaas to mil jata hai!
Aadhe ghante ke 'page load error' ke baad pahunch payee...!
' dostonkee majburiyan bhee samajhe,
galat fehmee ke shikar na bana karen!'
हम से संजीदगी नहीं होती ....
ढेरो दाद है आज तो...
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