शनिवार, 13 जून 2009

गजल- 63

लोग जिसका खा रहे हैं
क्या उसी का गा रहे हैं

चढ़ गयी इन पर भी चर्बी
आइने धुंधला रहे हैं

नेग, बख्शिश, भीख, तोहफे
पाने वाले पा रहे हैं

आप भी गंगा नहायें
खून क्यों खौला रहे हैं

पेट दिखलाना था जिनको
पीठ क्यों दिखला रहे हैं

इन फकीरों से सबक लो
इनमें कुछ राजा रहे हैं

अपने कद को हद में रखना
पेड़ काटे जा रहे हैं

14 टिप्‍पणियां:

ओम आर्य ने कहा…

बहुत बहुत बहुत बहुत खुब .............

अजय कुमार झा ने कहा…

आप तो बस लिखते जाइये ,,
हम पढ़ते चले जा रहे हैं.....

और सबूत के तौर पर ,
टिप्प्न्नी गढ़ते चले जा रहे हैं..

अच्छा अब चलते हैं,...
कई और भी अगले आ रहे हैं....

sanjeev gautam ने कहा…

इन फकीरों से सबक लो
इनमें कुछ राजा रहे हैं

अपने क़द को हद में रखना,
पेड काटे जा रहे हैं

बेहतरीन, लाजवाब!!! रूह ताज़ा हो गयी.
प्रतिदिन आपकी ग़ज़ल का इंतज़ार रहा है.

गर्दूं-गाफिल ने कहा…

वाह वाह

हमेशा की तरह
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

अनुचित न समझें तो

पेट दिखलाना था जिनको
पीठ क्यों दिखला रहें हैं

इसका सन्दर्भ पकड़ नहीं आया
कृपया मदद करें



सम्हाल के रखना ये तेवर
खरे सोने के हैं ये जेवर

कमाल की कारीगरी है
खुशबू से भरें हैं घेवर

हंस कर भौजी ने कहा होगा
बडा बांका है मेरा देवर

गलत बयानी नहीं है ये
मैं करता नहीं हूँ फेवर

हद जब लगी गुजरने
कडक कर वो बोला नेवर

वीनस केसरी ने कहा…

इन फकीरों से सबक लो
इनमे कुछ राजा रहे हैं
बहुत खूब

वीनस केसरी

shama ने कहा…

Baagwaanee pe diye sujhaw ke liye tahe dilse dhanywad!
Maa saath me hain..unhen aapki rachnayen padhke sunana chahti hun...filhal unhen bahar le jana hai..lekin lautke ham dono lutf uthayenge!
Kafee urdu daan hain..!

sanjeev gautam ने कहा…

दादा प्रणाम
क्या ये संयोग है कि मैं कल कानपुर में था मेरे साथी ने कहा कि लखनऊ चलते हैं दो दिन के लिये लेकिन मैंने मना कर दिया कि वहां जाकर सिवाय गर्मी के क्या मिलेगा. ख़ैर जानकर अच्छा लगा कि आप लखनऊ मैं हैं. मुलाक़ात तो गोरख़पुर में भी होती बस थोडा देर से अब थोडी जल्दी हो जायेगी. मैं लखनऊ कम ही न के बराबर आता हूं लेकिन अब आना होगा शायद जुलाई में ही. मेरा मो. न. है 9456239706 घर का है 0562-2600683 क्या मैं भी आपका मोबा. न. पा सकता हूं ताकि जब भी आऊं तो पहले ख़बर कर दूं.आप अगर आगरा आयें तो ख़बर ज़रूर करें.
लिखना कम ही हो पाता है.

daanish ने कहा…

इन् फ़कीरों से सबक़ लो
इन में कुछ राजा रहे हैं...

हुज़ूर ! किस शाइस्तगी से ऐसा नायाब शेर कह डाला आपने .
बहुत ही कामयाब ग़ज़ल है , हर शेर अपने आप में मुकम्मिल है .
मुबारकबाद कुबूल फरमाएं .

पढ़ लिए अश`आर सारे
खुद पे हम इतरा रहे हैं .

---मुफलिस---

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

सारवत जी ,

आप शायद पहली बार आये मेरे ब्लॉग पे .....शुक्रिया....!!

आपकी ग़ज़लों पे अच्छी पकड़ है .....लिखते भी लाजवाब हैं.....

इन फकीरों से सबक लो
इनमें कुछ राजा रहे हैं

वाह.....बहुत खूब लगा ये शे'र ......!!

Unknown ने कहा…

ho na ho chahe khun mein garmi lakin
kush bulbule najar aa rahein hein
tere dar se shikayat kum se kum humein to nahi
magar nale to najar aa rahein hein
kush soch to late pine se pehle adam
jo kadam itna ab ladkhda rahe hein
mein to khudi se anjan tha malik
magar khush log sahil bula rahein hein

दर्पण साह ने कहा…

doshi hoon ki itne dino se milne nahi aa paiya.
lekin tine acche "ash'aar" miss hue saza mil gayi.

zayaz bhi hai ye saza...

"...in fakiron se sabak lo..."

log chele bane na bane is baat se sir par aap apni ustaadi bakhubi nibha gaye.

दर्पण साह ने कहा…

my favourite is makta:

"Apne kad ko had main rakhna...
Ped kaate ja rahe hain"

शारदा अरोरा ने कहा…

अनुराग जी के ब्लॉग से आपकी इस ग़ज़ल तक , वाह कैसे तारीफ़ करूँ , कहने का अंदाज़ अलग है ,
अपने क़द को हद में रखना ...
पेड़ काटे जा रहे हैं ...
और सारी लम्बाई जैसे धरी रह जायेगी |

तिलक राज कपूर ने कहा…

उम्‍दा अशआर से भरी ग़ज़ल में किस शेर पर क्‍या कहा जाये?
चढ़ गयी इन पर भी चर्बी
आइने धुंधला रहे हैं।

दुर्भाग्‍य है, लेकिन यथास्थिति तो यही है।

तिलक राज कपूर