गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

ग़ज़ल- ek baar phir

रोशनी सब को दिखलाइये
ख़ुद पे भी गौर फरमाइए


आइना हूँ मैं दीवार पर
आइये, देखिये, जाइए


कौन आजाद है इस जगह
अपने शीशे बदलवाइये


लोग बेहद समझदार हैं
मौसमी गीत मत गाइए


रेत आंखों में भर जायेगी
इस हवा पर न इतराइये


लीजिये मुल्क जलने लगा
अब तो सिगरेट सुलगाइए

24 टिप्‍पणियां:

वीनस केसरी ने कहा…

क्या बात है
बहुत खूब

वीनस केसरी

गौतम राजऋषि ने कहा…

कई दिनो से "सिगरेट" को लेकर एक मिस्‍रा अटका हुआ था...समझ में नहीं आ रहा था कि इसका वजन कैसे निकलेगा....आज स्पष्ट हो गया...शुक्रिया आपका।

एक बेहतरीन ग़ज़ल इस बहर पे।

mehek ने कहा…

waah lajawab

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत खूब!!

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

sarwat sahab ,adab arz hai ,pahli baar apke blog par aayi hoon aur ye mahsoos kar rahi hoon ki ab tak kyon mahroom rahi ,ek ghazal ke bad sare kalam padhne se khood ko rok nahin payi ,kam az kam mere paas alfaz nahin hain tareef o tauseef ka bhi saleeqa hona chahiye jo abhi mere paas nahin hai.
main ye sirf ek ghazal ki baat nahin kar rahi hoon sab kuchh me'yaari hai
wo bhi sinfe shayeri men nahin aata.bahut bahut mubarak ho .

अजय कुमार ने कहा…

लीजिये मुल्क जलने लगा
अब तो सिगरेट सुलगाइए

करारा चोट है

निर्मला कपिला ने कहा…

लोग बेहद समझदार हैं
मौसमी गीत मत गाइए


रेत आंखों में भर जायेगी
इस हवा पर न इतराइय
बहुत खूब आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है बधाई

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

वाह! बहुत बढ़िया गजल हैं।बधाई।

Kafir ने कहा…

कौन आजाद है इस जगह
अपने शीशे बदलवाइये

sarwat ji,
aapki chand lafzon mein itni badi baat kehne ka andaaz atyant saraahniya hai.

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

किस शेर पर वाह कहूं कहां चुप हो जाऊं? इतना अच्छा लिखते हैं आप कि लगता है केवल पढती रह जाऊं.

vandana gupta ने कहा…

लीजिये मुल्क जलने लगा
अब तो सिगरेट सुलगाइए

bahut khoob........aise hi jagate rahiye.

shama ने कहा…

रेत आंखों में भर जायेगी
इस हवा पर न इतराइये...

Waah..kya baat hai!

अर्कजेश ने कहा…

एक आग है आपकी गजलों में, हर बार और वही अच्‍छी लगती है ।

रेत आंखों में भर जायेगी
इस हवा पर न इतराइये


लीजिये मुल्क जलने लगा
अब तो सिगरेट सुलगाइए

वाह वाह ।

गर्दूं-गाफिल ने कहा…

ये कहा तो क्या कहा,"तुम लाजवाब हो "
ग़ज़ल हुस्न है तो तुम उसका शबाब हो

हैरान हूँ मैं तेरे दिल की आग देख कर
तुम सूरते गुलाब में, एक ""आफ़ताब"" हो

कितना कटे हो तुम ज़माने की धार से
इसलिए हर खार का करारा जवाब हो

क्या है कोई मुकाबिल तुम्हारे ज़मीर के
इंसानियत के अर्श पर एक माहताब हो

चाहा किसी ख़िताब से नवाजू तुम्हे मगर
दिल ए गर्दूं ने कहा तुम खुद ही ख़िताब हो

सर्वत साहब ,
आप स्वस्थ और सानंद रहे ,
यूँ ही लिखते रहे ,यही प्रार्थना है
ऊपर लिखे शेरों के सिवा
अब और अल्फाज़ नहीं मिल रहे हैं

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बहुत खूब सुन्दर रचना
बहुत -२ धन्यवाद

अर्चना तिवारी ने कहा…

बहुत सुंदर ग़ज़ल लगी...

hem pandey ने कहा…

रोशनी सब को दिखलाइये
ख़ुद पे भी गौर फरमाइए
- खुद पे गौर फरमाने वालों की ही जरूरत है.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

रेत आंखों में भर जायेगी
इस हवा पर न इतराइये

लीजिये मुल्क जलने लगा
अब तो सिगरेट सुलगाइए ..

क्या कमाल के शेर हैं सर .......... धमाका है आपकी ग़ज़ल ....... हम जैसे नये खिलाड़ियों के लिए तोहफे से कम नही आपकी ग़ज़ल ..... .... शुभकामनाएँ

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

सर्व प्रथम में आप का तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चहुँगा की आप ने मेरा मार्गदर्शन किया
ये मेरी शरुआत है और आप सब से सीख रहा हूँ |
इस उम्मीद के साथ कि आप का मार्ग दर्शन इस छोटे भाई को इसी तरह(और गलतियाँ कहा पर है ) मिलता रहेगा
बहुत -२ आभार

daanish ने कहा…

huzoor...
ek ek sher apni misaal khud aap hi hai...thore alfaaz ka istemaal karte hue bhi aisi gehri aur sanjeedaa baateiN kar paana... aap jaise hunar.mnd ka hi kaam ho saktaa hai janaab ...'ismat aapa' ke ek ek lafz ki taaeed kartaa hoon
dheron mubarakbaad .

Kafir ने कहा…

@gardu gaafil,

Nice one.a Perfect salute to a ghazal writer.

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

GAGAR MEN SAAGAR.

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क्या आपने लोहे को तैरते देखा है?
पुरुषों के श्रेष्ठता के 'जींस' से कैसे निपटे नारी?

दर्पण साह ने कहा…

लीजिये मुल्क जलने लगा
अब तो सिगरेट सुलगाइए
Sabse Behterin....


कौन आजाद है इस जगह
अपने शीशे बदलवाइये

sheeshe ke badle chasme ho to?

eivein hi. Sooraj ko diya dikhane ka man hua.

janumanu ने कहा…

आइना हूँ मैं दीवार पर
आइये, देखिये, जाइए

bahut acha sher hai janaab