क्या है और क्या पास नहीं है
लोगों को एहसास नहीं है।
आईनें बोला करते हैं
चेहरों को विश्वास नहीं है.
हमने भी जीती हैं जंगें
यह सच है, इतिहास नहीं है।
थोड़ा और उबर के देखो
जीवन कारावास नहीं है।
बाहर तो सारे मौसम हैं
आँगन में मधुमास नहीं है।
इक जीवन , इतने समझौते
हमको बस अभ्यास नहीं है।
3 टिप्पणियां:
sunder
बड़ी तारीफ़ सुनी आपकी ग़ज़लों की....तो आ गया। गज़ल का नया-नवेला छात्र हूं, सीख रहा हूं आप सब उस्तादों की ग़ज़लों से। तो आज से आपको पढ़ना शुरू कर रहा हूं- आपके पहले पोस्ट से ही।
सुंदर ग़ज़ल...कुछ अनूठे काफ़ियों के साथ। ये शेर सबसे ज्यादा भाया-
"इक जीवन , इतने समझौते
हमको बस अभ्यास नहीं है"...अहा!!
यहाँ भी मोती बिखेरे हैं...Waah
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