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लुटेरा कौन है, पहचान कर खामोश रहती है
रिआया जानती है, जान कर खामोश रहती है.
बगावत और नारे सीखना मुमकिन नहीं इससे
ये बुजदिल कौम मुट्ठी तान कर खामोश रहती है.
कभी अखबार, काफी, चाय,सिग्रेट, पान, बहसों में
कोई आवाज़ उबल कर, ठान कर, खामोश रहती है.
गरीबी, भुखमरी, बेइज़्ज़्ती हमराह हैं जिसके
वो बस्ती भी मुकद्दर मान कर खामोश रहती है.
दरख्तों पर असर क्या है तेरे होने न होने का
हवा खुद को जरा तूफ़ान कर, खामोश रहती है!
साथियो, शुक्रिया...शुक्रिया. मेरी ज्यादतियां भी आप सह रहे हैं. इतने दिनों तक मैं ने कमेन्ट बॉक्स भी बंद रखा और आप लोगों ने मेरी इस उद्दंडता को भी सहन किया. यकीन कीजिए, मुझे खुद इसका बेहद दुःख रहा. जब भी कोई मुझसे कमेन्ट बॉक्स खोल देने को कहता, बेहद पीड़ा होती लेकिन अपनी इस संवेनशील आत्मा को क्या कहूं जो कुछ चीजों को सहन नहीं कर सकी और ....!
खैर, बात-बेबात वाले डॉ.सुभाष राय और चर्चित ब्लागर अविनाश वाचस्पति का जितना भी शुक्रिया अदा करूं, कम है. उन्होंने मुझे संकट से उबारने में जो परिश्रम किया और लगातार न सिर्फ मेरा हौसला बढ़ाया बल्कि धमकी भी दे डाली कि अगर नई पोस्ट और कमेन्ट बॉक्स ओपनिंग नहीं हुई तो अंजाम......!!!
डर गया हूँ, दब गया हूँ आप सब के स्नेह से, हुक्म की तामील कर रहा हूँ:
आराम की सभी को है आदत, करेंगे क्या
यह सल्तनत परस्त बगावत करेंगे क्या
मरने के बाद चार अदद काँधे चाहिएं
कुछ रोज़ बाद लोग ये ज़हमत करेंगे क्या
मजहब की ज़िन्दगी के लिए खून की तलब
हम खून से नहा के इबादत करेंगे क्या
खुद जिनकी हर घड़ी यहाँ खतरे में जान है
वो लोग इस वतन की हिफाजत करेंगे क्या
तक़रीर करने वालों से मेरा सवाल है
जब सामने खड़ी हो मुसीबत, करेंगे क्या!
और.... आज़ादी @ ६३........ मुबारक