किस्सा लखनऊ का है. जवाहर भवन सचिवालय स्थित प्रशिक्षण केंद्र में, ट्रेनिंग असिस्टेंट,राजेश शुक्लने ७ फरवरी, २००९ को आत्महत्या कर ली.पत्नी मिथिलेश और १६ वर्षीय बेटे पीयूष को पति की जगह न नौकरी मिली न फंड. फंड के लिए बेचारी दौडती रही, बाबुओं के आगे हाथ जोड़े, निदेशक से भी मिली लेकिन उसे कोरे आश्वासन ही मिलते रहे.
आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती गयी. भुखमरी ने मिथिलेश को एनीमिया का रोगी बना दिया. ४ जून, २०१० को मिथिलेश ने अपने हक की राह देखते देखते आँखें बंद कर लीं. मौत की सूचना मिलने के बाद भी उस कार्यलय का कोई अदना सा कर्मचारी भी सहानुभूति प्रकट करने के लिए भी नहीं आया.
मैं गज़ल पोस्ट करने के इरादे से आया था, इसी दौरान इस खबर पर निगाह पड़ गयी. घंटों दिमाग उलझा रहा और अंत में यही निर्णय हुआ कि गज़ल जाए भाड़ में.
हम क्या हो गए हैं? क्या ये लक्षण इंसान के हैं. उत्तर प्रदेश की राजधानी के सचिवालय कर्मी के साथ जब ऐसा हो सकता है तो दूर-दराज़ के जिलों की स्थिति क्या होगी, अंदाज़ा लगाएं!
एक बात कहूं, पुलिस से नफरत तो पहले ही से दिल में बसी हुई है. अब सरकारी मुलाज़िमों के प्रति भी घृणा पैदा हो गयी. मैं बहुत कुछ लिखने की मनः स्थिति में नहीं हूँ. इस कारण, फैसला आप पर छोड़ता हूँ. मुझे आपकी सपाट बयानी या आम टिप्पणी नहीं चाहिए, हो सके तो समर्थन दें ताकि इस मामले को थोड़ा आगे बढ़ा सकूं. एक बात याद रखिएगा----
कुछ न कहने से भी मिट जाता है एजाज़-ए-सुखन
ज़ुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है.
Swelling, Anti Ageing, Wrinkles, Boost Energy, Hair Growth Etc.Treatmen...
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इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष
सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व
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5 वर्ष पहले