सोमवार, 17 जनवरी 2011

ग़ज़ल

बयान देते हैं सब, कोई जी नहीं देता
कठिन समय पे कोई भीख भी नहीं देता

गरीब हो तो कहावत भी याद रखनी थी
बगैर तेल दिया रोशनी नहीं देता

चढाओ जितना भी जल, वो तो सिर्फ़ सूरज है
सुखा तो देता है लेकिन नमी नहीं देता

मैं दर्द लेके दुखी हूँ मगर पता है मुझे
मेरा ख़याल उन्हें भी खुशी नहीं देता

ये रिश्ते नाते भी लगते हैं उस महाजन से
जो सूद लेता है, खाता बही नहीं देता

लिखत पढ़त ही शरीफों में ले गयी सर्वत
मगर लहू मुझे संजीदगी नहीं देता

27 टिप्‍पणियां:

गर्दूं-गाफिल ने कहा…

यहाँ तंज भी है और रंज भी है क्या खूब कहन है वाह वाह वाह
तीर ऐ जुबां खामोश भी है तलवार भी है ये वाह वाह वाह

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

मैं दर्द लेके दुखी हूँ मगर पता है मुझे
मेरा ख़याल उन्हें भी खुशी नहीं देता

लिखत पढ़त ही शरीफों में ले गयी सर्वत
मगर लहू मुझे संजीदगी नहीं देता

समाज से और ज़माने से नाराज़गी का क्या अंदाज़ है!
वाह !
आम आदमी की तकालीफ़ को बयान करती हुई ग़ज़ल
बहुत उम्दा !

daanish ने कहा…

चढाओ जितना भी जल, वो तो सिर्फ़ सूरज है
सुखा तो देता है लेकिन नमी नहीं देता

मैं दर्द लेके दुखी हूँ मगर पता है मुझे
मेरा ख़याल उन्हें भी खुशी नहीं देता

बहुत
बहुत अच्छे शेर हैं...
सर्वत के दिल में बसे अच्छे शाईर से पहचान करवाने वाले ..
वाह !!

Mithilesh dubey ने कहा…

क्या बात है, लाजवाब लगे हर एक शेर, बहुत बढ़िया ।

राज भाटिय़ा ने कहा…

ये रिश्ते नाते भी लगते हैं उस महाजन से
जो सूद लेता है, खाता बही नहीं देता
वाह जनाब वाह क्या बात हे

शारदा अरोरा ने कहा…

पहला शेर समझ नहीं आया ,
इसमें जी से आप क्या कह रहे हैं...?
कुछ शेर बहुत सुन्दर बन पड़े हैं ...पसंद आए ।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

इन शेरों में आम जन का दर्द तो है ही, साथ एक ख़ास किस्म की प्रस्तुति भी है.
तारीफ़ में हमसे कुछ कहते नहीं बन रहा है...
मैं दर्द लेके दुखी हूँ मगर पता है मुझे
मेरा ख़याल उन्हें भी खुशी नहीं देता

लिखत पढ़त ही शरीफों में ले गयी सर्वत
मगर लहू मुझे संजीदगी नहीं देता

...बिलकुल! खूब फरमाया आपने.

(बयान देते हैं सब, कोई जी नहीं देता... यहाँ 'जी' से तात्पर्य मन, ध्यान, जान लगता है)

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
नीरज गोस्वामी ने कहा…

गरीब हो तो कहावत भी याद रखनी थी
बगैर तेल दिया रोशनी नहीं देता

ये रिश्ते नाते भी लगते हैं उस महाजन से
जो सूद लेता है, खाता बही नहीं देता

मेरे आका...इतनी मुद्दत बाद मिले हो...किन सोचों में गुम रहते हो ????...खैर देर आयद दुरुस्त आयद...इतनी खूबसूरत ग़ज़लें कहते हैं आप, आपकी कमी इसीलिए तो खटकती है...पूरी ग़ज़ल कमाल है..एक एक शेर दिन में उतरता चला गया है...मेरी दिली दाद कबूल करें और अपने चाहने वालों को यूँ न रह रह कर तरसाया करें...

नीरज

Meenu Khare ने कहा…

बहुत सुन्दर नज़्म.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

बयान देते हैं सब, कोई जी नहीं देता
कठिन समय पे कोई भीख भी नहीं देता

गरीब हो तो कहावत भी याद रखनी थी
बगैर तेल दिया रोशनी नहीं देता

चढाओ जितना भी जल, वो तो सिर्फ़ सूरज है
सुखा तो देता है लेकिन नमी नहीं देता

सर्वत जी आपके कहे शे'रों में कोई एक छांटना मुश्किल होता है ..
सभी एक से बढकर एक ....
ज़िन्दगी सच्चाई पेश करते हुए ...
चाहे वो कठिन समय की बात हो ...
या गरीबी की ...
और ये भी पता है किसे ख्याल खुसी नहीं देता ....
बहुत खूब ....!!

Creative Manch ने कहा…

मैं दर्द लेके दुखी हूँ मगर पता है मुझे
मेरा ख़याल उन्हें भी खुशी नहीं देता
ये रिश्ते नाते भी लगते हैं उस महाजन से
जो सूद लेता है, खाता बही नहीं देता

वाह वाह ~~~~ बहुत खूब
सारे शेर बहुत खुबसूरत हैं
बधाई
आभार

अर्चना तिवारी ने कहा…

मैं दर्द लेके दुखी हूँ मगर पता है मुझे
मेरा ख़याल उन्हें भी खुशी नहीं देता

ये रिश्ते नाते भी लगते हैं उस महाजन से
जो सूद लेता है, खाता बही नहीं देता....

sir jo very nice....

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

निसंदेह ।
यह एक प्रसंशनीय प्रस्तुति है ।
धन्यवाद ।
satguru-satykikhoj.blogspot.com

‘सज्जन’ धर्मेन्द्र ने कहा…

बहुत सुंदर ग़ज़ल है परन्तु मतले की पहली पंक्ति का दूसरी पंक्ति से संबंध पूर्णतया स्पष्ट नहीं है।

Shayar Ashok : Assistant manager (Central Bank) ने कहा…

बहुत खुबसूरत गज़ल ||
हर शेर का भाव दिल के तह
तक जाता है ||
उम्दा , लाजवाब ||

Asha Joglekar ने कहा…

मैं दर्द लेके दुखी हूँ मगर पता है मुझे
मेरा ख़याल उन्हें भी खुशी नहीं देता

ये रिश्ते नाते भी लगते हैं उस महाजन से
जो सूद लेता है, खाता बही नहीं देता


बहोत खूब सर्वत जी कमाल की गज़ल ।

Hadi Javed ने कहा…

Bahut achchi ghazal halat per kahi gayi behad sanjida .......sada alfaz bahut khubsurti ke saath sajaye gaye hain aapki shayri bilkul juda andaz
.चढाओ जितना भी जल, वो तो सिर्फ़ सूरज है
सुखा तो देता है लेकिन नमी नहीं देता...
wah Zindabad

devendra gautam ने कहा…

ये रिश्ते नाते भी लगते हैं उस महाजन से
जो सूद लेता है, खाता बही नहीं देता....bhatake bhatakte aapke blog par pahli baar aaya..kya khoob ghazlen kahi hain aapne padhkar tabiyat khush ho gayi.
devendra gautam

रवि कुमार ने कहा…

मगर लहू मुझे संजीदगी नहीं देता...

बेहतर...

kshama ने कहा…

चढाओ जितना भी जल, वो तो सिर्फ़ सूरज है
सुखा तो देता है लेकिन नमी नहीं देता

मैं दर्द लेके दुखी हूँ मगर पता है मुझे
मेरा ख़याल उन्हें भी खुशी नहीं देता
Alfaaz nahee milte....kya kahun?

shashi ने कहा…

saare sher achhe hain par yeh चढाओ जितना भी जल, वो तो सिर्फ़ सूरज है
सुखा तो देता है लेकिन नमी नहीं देता kamaallaga
hai

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