कभी आका कभी सरकार लिखना
हमें भी आ गया किरदार लिखना
ये मजबूरी है या व्यापार , लिखना
सियासी जश्न को त्यौहार लिखना
हमारे दिन गुज़र जाते हैं लेकिन
तुम्हें कैसी लगी दीवार, लिखना
गली कूचों में रह जाती हैं घुट कर
अब अफवाहें सरे बाज़ार लिखना
तमांचा सा न जाने क्यों लगा है
वतन वालों को मेरा प्यार लिखना
ये जीवन है कि बचपन की पढाई
एक एक गलती पे सौ सौ बार लिखना
कुछ इक उनकी नज़र में हों तो जायज़
मगर हर शख्स को गद्दार लिखना ?
सोमवार, 6 अप्रैल 2009
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