हैं तो नजरों में कई चेहरे
देवता लेकिन वही चेहरे
दाम दो तो पांव छू लेंगे
आठ, दस क्या हैं, सभी चेहरे
देख लेना, तेल बेचेंगे
पढ़ रहे हैं फारसी चेहरे
शहर जलता है तो जलने दो
कर रहे हैं आरती चेहरे
फिर सियासत धर्म बन बैठी
लाये कौड़ी दूर की चेहरे
नेकियाँ करने से पहले ही
ढूँढने निकले नदी चेहरे
जन्म, शादी, मौत, कुछ भी हो
पी रहे हैं शुद्ध घी चेहरे
आज पैसे हैं तो मजमा हैं
इतने सारे मतलबी चेहरे
लाज बचनी ही नहीं है अब
मर चुके हैं द्रौपदी चेहरे
इन दिनों अपनों में रहता हूँ
जबकि सब हैं अजनबी चेहरे
रुक्मिणी बोली, कन्हैया ना !
राधा बोली, ना सखी, चेहरे
मंगलवार, 5 मई 2009
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