मंगलवार, 9 नवंबर 2010

गज़ल



अपने  लिए दिमाग में कोई भरम नहीं
लेकिन हुजूर आप भी साबित कदम नहीं


माहौल के खिलाफ ये कैसा मुजाहिरा 
आवाज़ तो बुलंद है ,नारों में दम नहीं 


एक हादसे का सोग है नाटक की शक्ल में
सब रो रहे हैं,आँख किसी की नम नहीं


अक्सर ही मसलेहत के सबब टूट जाता है
उनका उसूल उसूल है कोई कसम नहीं 


किसकी लहू की प्यास का हम तजकिरा करें 
इंसान और दरिंदों में कोई भी कम नहीं


सर्वत अकेले तुम ही नहीं हो दुखी यहाँ
एक आदमी बताओ जिसे कोई गम नहीं  

14 टिप्‍पणियां:

SURINDER RATTI ने कहा…

Sarvat Sahab,
Bahut hi behtareen ghazals hai, maza aa gaya.
सर्वत अकेले तुम ही नहीं हो दुखी यहाँ
एक आदमी बताओ जिसे कोई गम नहीं एक आदमी बताओ जिसे कोई गम नहीं

Surinder Ratti
Mumbai

दिगम्बर नासवा ने कहा…

किसकी लहू की प्यास का हम तजकिरा करें
इंसान और दरिंदों में कोई भी कम नहीं


सर्वत अकेले तुम ही नहीं हो दुखी यहाँ
एक आदमी बताओ जिसे कोई गम नहीं

बहुत ही कमाल किया है आपने सर्वत साहब ... क्या ग़ज़ल कहते हैं ... कमाल ही कर देते हैं .... आपकी सोच शायद कुछ कुछ हमारी सोच से मिलती है .. ये बात अलग है में इतनी अच्छी ग़ज़ल नहीं कह पाटा जितनी आप ... मेरा एक ग़ज़ल ये शेर पढ़िए .... आज का नहीं है करीब साल एक पहले से लिखा हुवा है ... बस ब्लॉग पर नहीं डाल पाया ..

किसके जीवन में कभी ऐसा हुवा है
साथ खुशियों के रुलाता गम नही है

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

माहौल के खिलाफ ये कैसा मुजाहिरा
आवाज़ तो बुलंद है ,नारों में दम नहीं

बहुत दिनों दिनों के बाद दिखाई दिये हैं सर्वत साहब आप, लेकिन अपने उसी जोशीले अन्दाज़ में.


एक हादसे का सोग है नाटक की शक्ल में
सब रो रहे हैं,आँख किसी की नम नहीं

क्या बात है. बहुत सुन्दर. सच है, अब सब दिखावे के लिये ही तो रह गया है.

daanish ने कहा…

अपने लिए दिमाग में कोई भरम नहीं
लेकिन हुजूर आप भी साबित कदम नहीं

वाह-वा !
ज़बान-ओ-बयान की
उम्दा , मेआरी और खूबसूरत पेशकश .... वाह !!
अब इस मतले के तिलिस्म से बाहर आऊँ ,
तो कुछ आगे पढूँ . . .
जनाब,,,
आपका जादू जब चलता है
तो खूब चलता है ....
अब इसी शेर को लीजिये

"एक हादसे का सोग है नाटक की शक्ल में
सब रो रहे हैं,आँख किसी की भी नम नहीं"

और ये बुनावट.... तौबा ... !!
"उनका उसूल उसूल है कोई कसम नहीं"

मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

bahut khoobsoorat ash'aar se murassaa
mukammal ghazal
waah!

M VERMA ने कहा…

एक आदमी बताओ जिसे कोई गम नहीं
नहीं मिलेगा ज़नाब ऐसा आदमी कहीं भी.
बहुत खूबसूरत रचना

mridula pradhan ने कहा…

bahut achchi lagi.

VIJAY KUMAR VERMA ने कहा…

माहौल के खिलाफ ये कैसा मुजाहिरा
आवाज़ तो बुलंद है ,नारों में दम नहीं
बहुत सुन्दर. सच

अर्चना तिवारी ने कहा…

आवाज़ तो बुलंद है ,नारों में दम नहीं
बहुत अच्छे हैं सारे अशआर...पर ये मुझे बहुत पसंद आया...आभार

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

सर्वत अकेले तुम ही नहीं हो दुखी यहाँ
एक आदमी बताओ जिसे कोई गम नहीं

wah wah behatareen. sabhi sher lajawaab. badhaai.

Satish Saxena ने कहा…

"सर्वत अकेले तुम ही नहीं हो दुखी यहाँ
एक आदमी बताओ जिसे कोई गम नहीं "

बेहतरीन रचना सर्वत भाई आनंद आ गया !
ईद के पाक मौके पर मैं आपको व आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनायें देता हूँ !

Asha Joglekar ने कहा…

एक आदमी बताओ जिसे कोई गम नही । बुध्द भगवान के दर्शन के दर्शन करा दिये आपने । बहुत खूबसूरत गज़ल ।

निर्झर'नीर ने कहा…

सर्वत अकेले तुम ही नहीं हो दुखी यहाँ
एक आदमी बताओ जिसे कोई गम नहीं

wah ustad wah ..kya khoobsurat andaj hai

daad kubool karen

Shayar Ashok : Assistant manager (Central Bank) ने कहा…

किसकी लहू की प्यास का हम तजकिरा करें
इंसान और दरिंदों में कोई भी कम नहीं


सर्वत अकेले तुम ही नहीं हो दुखी यहाँ
एक आदमी बताओ जिसे कोई गम नहीं

वाह !! वाह !! सर जी || बेहतरीन शेर ||
हर शेर , आज की हालात बयां कर रहा ||
लाजवाब !!!!!