शुक्रवार, 26 जून 2009

गजल- 64

यार अब उनके कमालात कहाँ तक पहुंचे
शहर के ताज़ा फसादात कहाँ तक पहुंचे

अपनी आँखें हैं खुली, ताकि ये एहसास रहे
आगे बढ़ते हुए ख़तरात कहाँ तक पहुंचे

उसकी चुप क्या है, कोई सोचने वाला ही नहीं
लोग खुश हैं कि सवालात कहाँ तक पहुंचे

पिछले मौसम में सहर फूट पड़ी थी लेकिन

देखिये अबके बरस रात कहाँ तक पहुंचे

मेरे हालात से वाकिफ हो दरख्तों, कहना
तुम पे जंगल के ये असरात कहाँ तक पहुंचे

वो पुराने थे, विदेशी थे, उन्हें मत सोचो
देखना ये है नये हाथ कहाँ तक पहुंचे

सारे इल्जाम तो शहरों पे लगे हैं सर्वत
आपको इल्म है देहात कहाँ तक पहुंचे

17 टिप्‍पणियां:

संध्या आर्य ने कहा…

बहुत ही सही सवाल है ............कहाँ तक पहुचे ............बहुत बढिया

ओम आर्य ने कहा…

अतिसुन्दर क्या कहे भाईया............ उम्दा अभिव्यक्ति...........

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

भाई सर्वत जी,

मुक्कमल ग़ज़ल के हर शेर बेहतरीन.

किस किस की तारीफ करुँ.

बधाई

चन्द्र मोहन गुप्त

वीनस केसरी ने कहा…

waah waah bahut sundar sher kahe aapne
badhai kabool karen

(aapka falovar post apdet nahee kar raha hai mere dash bord me, kya kaaran ho sakta hai?)
venus kesari

Prem Farukhabadi ने कहा…

बहुत ही सुन्दर.आपका कवित्व आपकी कविता में झलकता है. बधाई !

श्रद्धा जैन ने कहा…

Wah kya baat kah di hai
aapne uski chup kya hai koi sochta nahi
log sochte hain ki sawalat kaha tak pahunche kamaal ka sher kaha hai aapne
aapko padhna bahut sukhad anubhav raha

Satish Saxena ने कहा…

बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति बेहद खूबसूरत ग़ज़ल के रूप में ! शुभकामनायें !

संजीव गौतम ने कहा…

दादा प्रणाम
विलम्ब से हाज़िर होने के लिये माफ़ी चाहता हूं. मैं कई दिन नेट से दूर रहा हूं. बहुत शानदार ग़ज़ल है. बडे कैनवास को अपने में समेटे हुए. बहुत सारे उत्तरों के साथ लेकिन हज़ार प्रश्न छोडते हुए.
"उसकी चुप......
सारे इल्ज़ाम......"
इनका तो कोई जवाब ही नहीं.

प्रकाश गोविंद ने कहा…

बेहद उम्दा गजल !

सार्थक प्रश्न करती .....साथ साथ जीवन के
अनुभवों को भी बताती.....चेतावनी देती.....प्रेरक रचना है...... अन्दर तक असर कर गयी...लाजवाब

मेरी शुभकामनाएं !

गर्दूं-गाफिल ने कहा…

फिर एक बार
बहुत शानदार

daanish ने कहा…

उसकी चुप क्या है कोई सोचने वाला भी नहीं
लोग खुश हैं क सवालात कहाँ तक पहुंचे ..

बहुत खूब हुज़ूर ! वाह !!
किस क़दर सादगी से ऐसे उम्दा
ख्यालात का इज़हार किया है
मुबारकबाद

---मुफलिस---

KK Yadav ने कहा…

Bahut sundar abhivyakti.

shama ने कहा…

Naye haath kahan tak pohonche...!

Yahee dohraa doongee,ki,"aayiye haath uthayen ham bhee, ham jinhen rasmo dua yaad nahee, rasme muhobbat ke siwa koyi but koyi khuda yaad nahee..."
Waqt kee yahee darkaar hai...ham sab milke haath batayen...ek naya desh nirmaan karen...ek pran karen, ki, hamse jo ban padega ham karenge..koyi rok sakta hai,to rok le..! Gar sty pe amada hain, nidartaa se...to majaal ki,koyi rok le!Ham gire, to aur peechhe sau khade rahenge!

shama ने कहा…

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shama ने कहा…

Phir ekbaar puranee rachna padhee..aur kayee naye arth saamne aaye..."aankhen ban honepe hain,Par khulee nahee hamaree...!

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shama ने कहा…

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दर्पण साह ने कहा…

ek baar muflis sir ne phon pe kaha tha ki kum hi aisa hota hai ki kisi ghazal main sab sher daad dene layak hon....

..par asha karta hoon muflis ji is baat se itfaq rakheingey ki un "kum" main se ek ghazal ye bhi hai...

kuch sher to behterin khaskaar:
"mere halat se waqif ho...."

aur
" uski chup kya hai..."

dil se padha aur zazbaton se pasand kiya.