शुक्रवार, 5 जून 2009

गजल- 61

हवा पर भरोसा रहा
बहुत सख्त धोखा रहा

जो बेपर के थे, बस गए
परिंदा भटकता रहा

कसौटी बदल दी गयी
खरा फिर भी खोटा रहा

कई सच तो सड़ भी गए
मगर झूट बिकता रहा

मिटे सीना ताने हुए
जो घुटनों के बल था, रहा

कदम मैं भी चूमा करूं
ये कोशिश तो की बारहा

चला था मैं ईमान पर
कई रोज़ फाका रहा

5 टिप्‍पणियां:

वीनस केसरी ने कहा…

आप आये बहार आई
वीनस केसरी

sanjeev gautam ने कहा…

दादा प्रणाम
आपने मुझे स्नेह लायक समझा ये आपका बडप्पन और मेरा सौभाग्य है. इस बहाने आपकी ग़ज़लें पढने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ. कह नहीं सकता कि मैं कैसा महसूस कर रहा हूं. हर ग़ज़ल कहने लगी कि मुझे पढ और मैं पहली से ही आगे नहीं बढ पा रहा. बडे बेमन से नेट जोडा था लेकिन मेरा आज का दिन सार्थक हो गया.
ये क्रम निश्चित रूप से आगे भी जारी रहेगा.....

गर्दूं-गाफिल ने कहा…

सर्वत जी
दुनिया बहुत खराब हुई है झूठ को सच्चा कहने में
सत्य प्रशंशा करने में बहुत कृपण है यह संसार
आपके हक को लौटता हूँ क्यों रखूँ मै कहो उधार
आपके शेरो से आखिर हम भी ख़ुशी पाते हैं यार

फिर एक बेहतरीन गजल
पुनरागमन पर स्वागत

gazalkbahane ने कहा…

हवा पर भरोसा रहा....
खरा फ़िर भी खोटा रहा....

मिटे सीना ताने हुए....
जो घुटनो के बल था रहा
क्या बात है सर्वत भाई

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

waah...bahut khoob...
मेरी ग़ज़ल और समकालीन ग़ज़ल पत्रिका देखें..आपको अवश्य अच्छा लगेगा...